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मेरी भी अम्मी थीं …
श्यामलाल ने आमिरबाग चलने के लिए कई टैक्सी वालों से बात की लेकिन कोई भी वहां जाने को तैयार नहीं हुआ तो वह बस स्टैंड के पास चाय की दुकान के बाहर पड़ी बेंच पर जाकर बैठ गया। वहां एक युवक चाय पी रहा था। उसने श्यामलाल से कहा, ‘हुजूर, टूरिस्ट हैं क्या?
‘कह सकते हो।
‘शिकारे में रुकना पसंद करेंगे? मुनासिब दाम पर दिला दूंगा।
‘तुम टूरिट्स गाइड हो?
‘नहीं, मैं टैक्सी ड्राइवर हूं। लोगों को आस-पास की जगहों पर घुमाने ले जाता हूं।
‘मुझे आमिरबाग जाना है। क्या तुम चलोगे?
‘आमिरबाग! उस वीराने में क्या रखा है। चलना है तो पहलगांव चलिए। बहुत खूबसूरत जगह है।
‘नहीं! मुझे आमिरबाग ही जाना है। चलना हो तो बताओ।
‘120 किमी. दूर उस वीरान जंगल में फंसने यहां से भला कौन जाएगा?
‘वहां आने-जाने का कितना पैसा लगता है।
‘तीन हजार-पैंतीस सौ में टैक्सी मिल सकती है।
‘मैं चार हजार दूंगा। तुम चलोगे?
‘आप जिद् कर रहे हैं तो चलिए लेकिन मैं वहां ज्यादा देर रुकूंगा नहीं। लौटकर आने में देर हो जाएगी। किसी होटल में रुकने की व्यवस्था करवा दूं।
‘नहीं, आते ही उधमपुर निकल जाऊंगा।
वह युवक श्यामलाल को लेकर टैक्सी से आमिरबाग की ओर चल दिया।
‘जनाब, आप कुछ संदिग्ध लग रहे हैं?
‘क्यों?
‘वीरान आमिरबाग, जाना। वापस आते ही उधमपुर निकल जाना। डिफेंस वाले तो नहीं हो।
‘नहीं।
‘फिर आमिरबाग क्यों?
‘वहां मेरा घर है।
‘आप कश्मीरी हैं। रंग देखते ही समझ गया था। ऐसा दमकता रंग तो अल्लह ने हमें ही बक्शा है। आमिरबाग में कहां रहते हैं?
‘बूढ़े बाबा मंदिर के पास।
युवक ने गाड़ी रोक, श्यामलाल की ओर देखा और बोला, ‘जनाब नाम बताएंगे?
‘श्यामलाल गंजू।
‘अच्छा हिंदू हो। वहां क्यों जा रहे हो? यह मंदिर तो गिर चुका है।
’20 साल पहले जिस रात मंदिर तोड़ा गया था उसी रात हमारे परिवार ने गांव छोड़ दिया था।Ó, श्यामलाल की आंखों में आंसू आ गए।
‘हालात तो अभी भी वैसे ही हैं। मैं नहीं चाहता कि आपके साथ मेरा जनाजा भी समय से पहले निकल पड़े। उस एरिया में कई आतंकवादी हैं।, ड्राइवर ने टैक्सी रोक दी।
‘तुम्हें वापस जाना है! जाओ। मैं पैदल ही चला जाऊंगा। मां की इच्छा जान से ज्यादा बड़ी है।, श्यामलाल गाड़ी से उतर कर पैदल ही आगे बढऩे लगा।
ड्राइवर ने गाड़ी से उतरकर श्यामलाल का हाथ पकड़ लिया और कहा, ‘हुजूर मेरी दुखती रग पर हाथ रख दिया। मां मेरी कमजोरी है। बताएं वहां क्यों जा रहे हैं? समझ में आएगा तो मैं आगे चलूंगा।
‘मेरी मां बीमार है। पता नहीं किस पल उसकी मौत हो जाए। हमने जब आमिरबाग छोड़ा था तो मां ने जेवर आंगन में नीम के पेड़ के पास गाड़ दिए थे। मैं उन्हीं को लेने आया हूं। मां चाहती है कि वह जेवर बेंचकर जो पैसा मिले वह पल्लो को शादी में दे दूं।
‘ये पल्लो कौन है?
‘मेरी बहन है। अगले महीने उसकी शादी है। मां की बात रखूंगा, जान रहे या चली जाए।
‘जनाब, बहुत कम लोग ऐसे होते हैं जो अपनी मां के लिए बड़े से बड़ा खतरा मोल ले लेते हैं। चलिए अब ये गाड़ी आमिरबाग पहुंचकर ही रुकेगी।
वह युवक श्यामलाल को लेकर फिर से आमिरबाग की ओर चल दिया।
‘हुजूर अब आमिरबाग में आपको कुछ नहीं मिलेगा। वहां कोई नहीं रहता है। सब उजड़ चुका है।
‘क्यों?
‘आप लोगों के घर तो पहले ही गिरा दिए गए थे। बाकी के जो बचे थे, वे भी खत्म हो गए हैं।
‘वह कैसे?
‘आप लोगों में से किसी एक के घर पर आतंकवादी उमर खान ने कब्जा कर लिया था। सुना है, उसकी अम्मी ने मरते समय उससे समर्पण को कहा तो वह तैयार हो गया। यह बात उसके आका को नागवार गुजरी। उसने उसे मारने के लिए लोगों को भेज दिया। खूब गोली-बम चले। सारा गांव जल गया।
‘उमर खान का क्या हुआ?
‘मारा गया और क्या। पांच लाख का ईनाम था उस पर।
‘उसके बारे में कुछ और बताओ?
‘छोडि़ए जनाब! इंसानों की बात करिए, हैवानों की नहीं।
बातों के दौर में सफर का पता ही नहीं चला और आमिरबाग आ गया। गाड़ी सड़क के किनारे खड़ी करके वह युवक श्यामलाल के साथ उसके धराशयी घर तक आया और उसके साथ नीम के पेड़ के चारों तरफ खुदाई करने लगा। काफी गहरा खोदने के बाद भी कुछ नहीं मिला तो श्यामलाल ने हताश होकर कहा, ‘चलो, यहां कुछ नहीं है।
दोनों टैक्सी में बैठकर श्रीनगर की ओर वापस चल दिए। श्यामलाल पूरी तरह टूट गया था। जब श्यामलाल बहुत देर तक कुछ नहीं बोला तो उस युवक ने खामोशी तोड़ते हुए कहा, ‘आपके पास बहन की शादी के लिए पैसे तो हैं?
‘पैसे हैं, पर मां अपनी ओर से भी पल्लो को कुछ देना चाहती है। 20 साल बीत गए लेकिन शायद ही कोई दिन ऐसा बीतता हो जब मां ने उन जेवरों के बारे में बात न की हो। अब उसका दिल टूट जाएगा।
श्यामलाल की बातों से ड्राइवर भी उदास हो गया। टैक्सी श्रीनगर की ओर तेजी से बढ़ती जा रही थी। कुछ देर बाद ड्राइवर ने कहा, ‘जनाब, मोबाइल देंगे। कॉल करनी है। मेरे में बैलेंस नहीं है।
श्यामलाल ने उसे मोबाइल दिया तो वह गाड़ी रोककर नीचे उतरा और कुछ दूर जाकर मोबाइल से किसी से बात करके वापस आ गया। इस बार टैक्सी चले 15 मिनट ही हुए थे कि पीछे से आईं मिलेट्री की गाडिय़ों ने टैक्सी को घेर लिया। सुरक्षा बल के जवान उन दोनों को हिरासत में लेकर बेस कैंप लाए और अलग-अलग ले जाकर पूछताछ की।
काफी देर बाद सेना के एक अधिकारी ने श्यामलाल से आकर कहा, ‘जेंटिलमैन, तुमने ठीक समय पर कॉल की। जिस उमर खान को सबने मरा समझ लिया था, तुमने उसे पकड़वा दिया। इस पर पांच लाख का ईनाम था, वह अब तुम्हें मिलेगा। शाबास। उमर खान तुमसे मिलना चाहता है। जाओ उससे मिल लो। डरना नहीं अब वह हिरासत में है।
श्यामलाल दूसरे कमरे में बंदी बनाए गए उमर खान के पास गया और उसे देखते ही बोला, ‘तुम उमर खान!
‘हां, मैं। जनाब आप ने मुझे मेरी अम्मी की याद दिला दी। मैं भी अपनी अम्मी को बहुत चाहता था। वे कहती थीं, ये आतंकवादी मजहब के नाम पर लोगों को गुमराह कर रहे हैं। ये देश के ही नहीं मजहब के भी दुश्मन हैं। आज उनको मरवा रहे हैं कल खुद को मरवाएंगे। अम्मी की बात बहुत देर से मेरी समझ में आई। उनकी बात रखने के लिए समर्पण करने जा रहा था लेकिन मुझ पर हमला हो गया। मैं बच गया लेकिन सभी ने मुझे मरा मान लिया तो मैंने सोचा कि क्यों न आगे की जो भी थोड़ी बहुत जिंदगी बची है, नई पहचान के साथ जी ली जाए। कुछ अच्छे काम कर लिए जाएं जिससे जन्नत में बैठी मेरी अम्मी मेरे पिछले गुनाहों को माफ कर दें।
‘समर्पण भी तो कर सकते थे?
‘कभी न कभी तो कर ही देता लेकिन इससे बढिय़ा दूसरा मौका फिर कहां नसीब होता। अपनी मां को बता देना कि ये पैसे उन्हीं जेवरों को बेंचकर आए हैं जो उसने नीम के पेड़ के नीचे गाड़े थे। जनाब, पहचान बदलकर मैं जिस जिंदगी तो तलाश रहा था, शायद वह मुझे अब मिल गई है।, कहकर उमर खान ने अपनी अम्मी को याद करते हुए आंखें बंद कर लीं।
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