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यादगार तोहफा

somthing nothing
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यादगार तोहफा
‘बाहर जाकर देखो शायद अब कोई रिक्शा या आटो मिल जाए। बंटी की तबियत और खराब होती जा रही है। अब तो ठीक से आंखें भी नहीं खोल पा रहा है।
‘कितनी बार तो देख आया हूं। कहीं कोई साधन नहीं है। सड़कों पर लोग भी नहीं हैं।Ó, राजा ने पत्नी रमा से कहा।
‘तो क्या बंटी को ऐसे ही बुखार से तपने दें।
‘करें तो क्या करें, आस-पास कोई डॉक्टर भी तो नहीं है। सरकारी अस्पताल यहां से दस किलो मीटर दूर है। इस हालत में उसे बिना किसी साधन के ले जाना भी तो ठीक नहीं है। बाहर आग बरस रही है, धूप से तबियत और न खराब हो जाए।
राजा खटिया पर लेटे बंटी के बगल में बैठ गया।
रमा अपने लाड़ले के माथे पर गीली पट्टी रखती, उठाती, निचोड़ती, घड़े के पानी से गीला करती और फिर माथे पर रखती। जब वह थकती तो राजा यही काम शुरू कर देता। इसके बाद भी बंटी की हालत बिगड़ती जा रही थी। शरीर की तपन लगातार बढ़ती जा रही थी। उसकी यह हालत देख, राजा एकबार फिर किसी साधन की तलाश में घर से बाहर निकल गया।
बंटी को गोद में लिए रमा भगवान से प्रार्थना कर रही थी कि इस बार राजा को कोई न कोई साधन मिल जाए। राजा के इंतजार में उसका एक-एक पल घंटों के समान बीत रहा था। वह जब बंटी के चेहरे को देखती तो उसकी आंखों से आंसू बहने लगते।
कुछ देर बाद दरवाजे पर हुई दस्तक हुई। रमा ने दौड़कर इस उम्मीद से दरवाजा खोला कि राजा कोई साधन ले आया है, लेकिन राजा को अकेला देखकर उसकी आंखों में आई चमक पलभर में ही गायब हो गई।
‘तुमसे कुछ नहीं होगा, इस बार भी कोई साधन नहीं लाए। कुछ करो, कहीं अपना बंटी ….। बदहवास रमा जमीन पर बैठ गई।
रोते हुए राजा कहा, ‘इसे अस्पताल ले चलते हैं। तीन-चार हजार रुपए ले लो।
‘बिना साधन के बंटी को लेकर कैसे चलेंगे?
‘गोद में ले चलूंगा। मेरे बाजू इतने कमजोर नहीं हैं जो इसे उठा न सकूं। इसके लिए कुछ भी कर सकता हूं, मेरी जिंदगी में इसके अलावा और है ही क्या। इसी से तो हम लोगों की खुशियां हैं।
‘अस्पताल तो बहुत दूर है। ऊपर से जून की तपती धूप। कहीं इसकी हालत और न खराब हो जाए?
‘भगवान सब ठीक करेंगे, इसे कुछ नहीं होगा। सब ठीक हो जाएगा। अब देर न करो, जल्दी चलो।
रमा ने पैसे पल्लू में बांधे। टिफिन में कुछ रोटियां और अचार रख, चलने को तैयार हो गई। राजा बंटी को गोद में लेकर तेज कदमों से अस्पताल की ओर चल दिया।
बंटी की पीठ सहलाती जा रही रमा का हर कदम राजा के कदमों का साथ दे रहा था।
वह बेचारीराजा के माथे पर आए पसीने को भी उस तौलिया से पोछती जिससे उसने बंटी के शरीर को ढका था।
15 साल के बंटी के वजन और तेज धूप ने राजा के कदमों को कुुछ मिनटों में ही मंद कर दिया। राजा के कदम डगमगाने भी लगे थे। फिर भी वह चलता जा रहा था। जब शरीर ने पूरी तरह जवाब दे दिया तो वह फुटपाथ पर लगे नीम के पेड़ के नीचे बंटी को गोद में लेकर बैठ गया।
बंटी का शरीर आग की तरह धधक रहा था। रमा ने उसके पानी की बोतल उसके होंठों पर लगाई। बंटी ने एक-दो घूंट पानी पिया और फिर अर्धचेतना में चला गया। राजा बंटी को सीने से लगा फफक-फफक कर रोए जा रहा था।
‘आप परेशान क्यों है। इसकी तबियत अब ठीक हो रही है। अब तो इसने पानी भी पी लिया है। इसने उल्टी भी नहीं की है। याद है, सुबह जबरदस्ती एक कप पानी पिलाया था तो उसने तुरंत उलट दिया था। इसका बुखार भी उतर रहा है। शरीर की यह तपन बुखार नहीं, धूप के पीछे है। कुछ देर यहीं इस नीम के पेड़ के नीचे आराम करते हैं, फिर अस्पताल चलेंगे। दो-चार खुराक में ही बंटी ठीक हो जाएगा। कल उसका जन्मदिन भी तो है। उसके लिए बैट भी तो खरीदना है। कहता है, सचिन तेंदुलकर बनूंगा। शतकों का शतक लगाऊंगा। देखना, एक दिन यह सचिन से भी आगे निकलकर दिखाएगा।, अपने आंसुओं का दम घोट रमा ने राजा से कहा और बंटी को उनकी बाहों से खींचकर अपने आंचल में छिपा लिया।
कुछ देर बाद जब राजा की थकान कम हुई तो उसने बंटी को वापस अपनी गोद में लिया। बंटी के शरीर में किसी भी तरह की हलचल नहीं हुई। राजा ने उसे जोर से हिलाया, नोचा, दो-चार थप्पड़ मारे, सीने को कई बार जोर से दबाया मगर फिर भी उसका शरीर शांत ही रहा। पूरी तरह शांत, सांस लेने में होने वाली हलचल भी नहीं। बदहवास राजा की सिसकियां पहले चीखों और फिर सिसकियों में तब्दील हो गईं। वह समझ चुका था कि इस भारत बंद के चलते उसके इकलौते बेटे बंटी की सांसें भी हमेशा के लिए बंद हो गई हैं। जीवित लाश में परिवर्तित हो चुके राजा ने बंटी को फुटपाथ पर लिटाया और उसके ऊपर गमछे से पंखा झलने लगा। पूरी तरह बदहवास हो चुकी फुटपाथ पर बैठी रमा ने बंटी का सिर गोद में लिया, उसके माथे पर प्यार से हाथ फेरा और राजा को देखते हुए बोली, ‘मैं आपसे कह रही थी न, बंटी ठीक हो जाएगा। आप बेकार ही परेशान हो रहे थे। देखिए, इसका बुखार छूमंतर हो गया है। शरीर बर्फ की तरह ठंडा है। कितने आराम से सो रहा है। अब यह ऐसे ही सोता रहेगा। इस नींद से इसकी सारी थकान दूर हो जाएगी। जब यह ‘भारत बंदÓ खत्म होगा और रिक्शा-आटो मिलेंगे तो हम वापस घर चलेंगे। अब अस्पताल चलने की कोई जरूरत नहीं है। वहां तो बीमार जाते हैं। बंटी तो पूरी तरह ठीक हो गया है। इस बार इसका जन्मदिन हम खूब धूमधाम से मनाएंगे। वैसे भी इस सफल भारत बंद ने हमें इसके जन्मदिन के पहले न भूलने वाला एक यादगार तोहफा तो दे ही दिया है।

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