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शिक्षित घर में जाएगी तो इज्जत बढ़ जाएगी
आम के बाग में बनवारी रोज की तरह अपनी मंडली के साथ बैठे गप्पें लगाए जा रहे थे। रोज गप्प बाजी में आगे रहने वाला किसन आज शांत था। वह बिलकुल चुप था। न तो अपनी तरफ से कुछ कह रहा था और न ही किसी की बात में हां, न कर रहा था। बहुत देर तक तो किसी ने उस पर ध्यान ही नहीं दिया लेकिन जब वह मंडली से उठकर जाने लगा तो उसे रोकते हुए बनवारी ने कहा, ‘किसन गुरू, आज बहुत शांत हो। न हां, न ना। मौन वृत रख लिया है क्या? अगर बोल नहीं सकते हो तो कम से कम दाएं-बांए ऊपर-नीचे सिर तो हिला ही सकते हो।
अपनी बात का किसन पर किसी तरह का प्रभाव पड़ते न देख, बनवारी ने फिर कहा, ‘अरे भईया, अगर कोई परेशानी है तो बताओ। हम लोग एक ही गांव-बिरादरी के हैं। मिलजुल कर निपटा लेंगे। मुंह में ताला लगा लेने से कुछ मिलने वाला नहीं है। खैर अगर अपना समझो तो बता दो। नहीं तो जय राम जी की।
‘बनवारी भईया, ऐसी कोई बात नहीं है। यहां सभी अपने हैं। घर-परिवार के हैं। जब भी कोई परेशानी आएगी, बता देंगे।Ó, कह कर किसन जाने लगा।
‘जाओ गुरू। कुछ बात तो जरूर है जो तुम हम लोगों से छिपा रहे हो। तुम्हारी जबान चेहरे का साथ नहीं दे रही है। कोई न कोई बात तो जरूर है।Ó, बनवारी ने कुछ गंभीर होकर कहा।
किसन वापस आकर मंडली में बैठ गया और कुछ देर चुप-चाप बैठे रहने के बाद बोला, ‘भईया बड़ी समस्या आ गई है। मझधार में फंसा हूं। समझ नहीं आ रहा है करूं क्या?
‘अरे लल्लू, जब तक पूरी बात नहीं बताओगे, तब तक कोई तुम्हारी समस्या समझेगा कैसे। यहां किसी के पास जादूई शक्ति तो है नहीं कि मंतर मारा और जान ली अंदर की बात। बिना किसी संकोच के बात बताओ। मामला मंडली के बाहर नहीं जाएगा।Ó, बनवारी किसन की पीठ पर हाथ फेर कर बोले।
‘दद्दा तुम्हारा दिमाग भी बस फालतू बातों में लगा रहता है। ऐसी कोई बात नहीं है। गुडिय़ा की शादी की बात दो जगह चल रही है। इसी को लेकर परेशान हूं। कोई निर्णय नहीं ले पा रहा हूं। कभी इधर सोचता हूं, तो कभी उधर। क्या करूं?
‘बात कहां चलाई है।
‘बदरापुर के बंसी के लड़के और निराई के शंभू के भाई से कुंडली मिल गई है।
‘बदरापुर का बंसी तो बहुत पैसे वाला है। उसके पास तो कई एकड़ जमीन है। उसका लड़का भी देखने-सुनने में अच्छा है। किसन अगर वहां रिश्ता बन जाता है तो तुम्हारी बहन राज करेगी। मेरी मानो तो बिना देर किए हां कह दो। ऐसे रिश्ते बार-बार नहीं मिलते हैं। बेवकूफ हो तुम हो परेशान हो रहे हो।
‘दद्दा गुडिय़ा तैयार नहीं हो रही है।
‘क्या? वह तो बीए पास है। समझदार भी है तो फिर यह बेवकूफी क्यों कर रही है। उसे समझाओ, ऐसे मौके बार-बार नहीं मिलते हैं।
‘करें क्या। घर में भी कई लोग उसके साथ हैं। छुट्न्ने की बीबी, बड़े जीजा और जीजी भी उसके साथ हैं। वे भी बंसी के यहां गुडिया की शादी नहीं करने को कह रहे हैं।
‘बंसी के लड़के के बारे में कहीं कोई ऊंच नीच तो उन लोगों ने नहीं सुन ली है। वैसे मैंने तो ऐसा कुछ नहीं सुना। अरे आग लगाने वाले भी बहुत होते हैं। गुडिय़ा को अच्छा घर न मिले इसलिए कहीं बंसी के परिवार को लेकर किसी ने कोई सुर्रा तो नहीं दे दिया।
‘दद्दा, बंसी का लड़का आठवां भी नहीं पास है। गुडिय़ा और ये बाकी लोग कह रहे हैं कि शादी शिक्षित परिवार में ही करेंगे।
‘मैं समझा-समझा कर हार गया कि पढ़ाई-लिखाई तो पैसा कमाने के लिए ही की जाती है। वह पढ़ा लिखा तो नहीं है लेकिन उसके पास पैसा कितना है। हर साल दो-तीन बीघा खेती बढ़ ही जाती है। पढ़ाई-लिखाई उन लोगों के लिए जरूरी है जो गरीब हैं लेकिन मेरी इस बात को वे लोग समझ ही नहीं रहे हैं।
‘अच्छा अब समझे, पेंच कहां है। यार किसन, बात तो दोनों ही सही लग रही हैं। सच में तुम्हारी समस्या विकट है। मैं भी असमंजस में फंस गया हूं। क्या करू ……
कुछ देर चुप रहने के बाद बनवारी फिर शुरू हुए, ‘निराई के शंभू का भाई क्या करता है? पहले उसके और परिवार के बारे में बताओ। तब कोई सलाह दे पाऊंगा।
‘निराई गांव के शंभू प्रसाद के पास केवल दस बीघा खेती है। उसका छोटा भाई काफी पढ़ा लिखा है और सिचाई विभाग में बाबू के पद पर काम कर रहा है। देखने-सुनने में भी अच्छा है। लड़के से मिला तो उसने बताया कि वह पीसीएस की तैयारी कर रहा है और उसे उम्मीद भी है कि वह इसमें सफल हो जाएगा। गुडिय़ा और घर के कई लोग लड़के की पढ़ाई लिखाई को देखकर वहीं रिश्ता करना चाह रहे हैं। वे कह रहे हैं कि बंसी के यहां पैसा तो बहुत है लेकिन क्या फायदा जब लड़का जब ज्ञानी नहीं है।
मंडली में सन्नाटा छा गया। दो-दो, तीन-तीन के ग्रुप में जाकर लोग इधर-उधर खड़े हो गए। आपस में चर्चा की और फिर वापस अपनी-अपनी जगह पर आकर बैठ गए। बनवारी ने एक-एक कर सभी को अपने पास बुलाया और उनसे उनकी राय जानी। जब सभी लोग अपनी राय से उन्हें अवगत करा चुके तो उन्होंने किसन से कहा, ‘भाई, मंडली की राय है कि तुम गुडिय़ा जहां चाह रही है, वहीं उसकी शादी करो। शिक्षा से धन आता है, संस्कार आते हैं। अशिक्षा धन और संस्कारों से लोगों को दूर कर देती है। तुमने गुडिय़ा को यही सोचकर तो इतना पढ़ाया है कि वह अच्छे पढ़े लिखे घर में जाए। तो फिर अब परेशान क्यों हो। ये मान जो कि लड़की जब शिक्षित घर में जाएगी, तो पूरे गांव की इज्जत बढ़ जाएगी।
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