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हाय न हुई निर्दलीय की बाल्टी

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हाय न हुई निर्दलीय की बाल्टी

सुबह पांच बजे से ही मोड़ वाले सरकारी नल पर बाल्टियां एक दूसरे को पीछे छोड़ नल तक पहुंचने के लिए संघर्ष कर रही हैं। उनके बीच हो रही झड़प से निकलने वाली टन्न-टन्न की आवाज कभी धीरे तो कभी तेज हो रही है। बेचारी सीधी-साधी प्लास्टिक की बाल्टियां चोट लगने के डर से लगातार भीड़ में पीछे होती जा रही हैं। वहीं खुर्राट तरीके वाली लोहे की वजनदार बाल्टियां सबको चीरते हुए विजयी रेखा (सरकारी नल) तक पहुंच रही हैं और उपहार स्वरूप पानी लेकर भीड़ से बाहर हो रही हैं।
सरकारी नल के सामने एक नेता की हवेली है। हवेली की छत पर रखी पीतल की बाल्टी यह सब देख हंस रही है। वह सोच रही है कि इनका भाग्य शायद ही कभी बदले। जमाना हो गया, इनको इसी तरह बूढ़े हो चुके इस थके नल के नीचे आपस में लड़ते देखते। पता नहीं कब इन्हें आराम मिलेगा।
तभी लाइन में लगी एक उम्रदराज अलमुनियम की बाल्टी की नजर इस पीतल की बाल्टी पर गई। उसने एक नजर उसे देखा और फिर बगल में खड़ी जंग लगी लोहे की बाल्टी को धक्कामार कर बोली ‘काश अपनी किस्मत भी ऐसी ही होती। देखो कितने आराम से खड़ी है। कोई मेहनत नहीं कोई परेशानी नहीं बस आराम ही आराम। वाह भाई क्या जिंदगी है।Ó
जंग लगी बाल्टी ने हवेली की छत से झांक रही पीतल की बाल्टी को देखा। जोर की सांस ली और बोली। सही कहती हो, हम इसकी बराबरी नही कर सकते। आज इसका दिन है पर पता नहीं कल हो कि न हो। देखो कितनी सुन्दर है, नई बहू की तरह दियाले से झांक रही है।
‘यह सब तो अपने-अपने पूर्व जन्मों के कर्मों का फल है। कोई लाइन में लगे मरा रहे, कोई दिन रात छत पर परा रहे। अलमुनियम की बाल्टी ने कहा।
‘सच कहती हो बहन। यह सब दिनों का फेर है। चांदी की चम्मच लेकर सब पैदा नहीं होते। सुख पर कुछ लोगों का ही हक होता है। हम उनमें से हैं जिन्हें भगवान ने किस्मत राशनकार्ड की युनिट के हिसाब से दी है और गम भरपूर सब्सिडी के जरिए से। जंग लगी बाल्टी ने उदास होकर कहा।
हवेली की छत से झांक रही पीतल की बाल्टी यह सब सुन रही है। उसे इन दोनों की किस्मत पर रोना नहीं हंसी आ रही है।
(दूसरे दिन की सुबह)
अलमुनियम की बाल्टी आज कुछ लेट हो गई है। जब वह नल पर पहुंची तो मोहल्ले की सभी साधारण बाल्टियां वहां वरीयता के अनुसार लाइन में खड़ी मिलीं। लाइन देखकर ही उसे पसीना आ गया। वह मन ही मन बोली ‘मर गई। नंबर आने तक कहीं यह खूसट नल न चला जाए और लाइन में सबसे पीछे जाकर खड़ी हो गई। आज लाइन हवेली के गेट तक पहुंच गई है।
जब भी बीच से कोई बाल्टी चिल्लाती ‘देखो बीच में घुस रही है। तो वह तल्ले पर उचक-उचक कर लाइन में आगे देखने का प्रयास करती।
अचानक उसके कान में एक मधुर आवाज गूंजी ‘सुनो बहन, उसने अगल-बगल देखा फिर आगे वाली बाल्टी से पूछा ‘तुमने कुछ कहा है क्या? जवाब मिला नहीं।
पल भर में फिर वही आवाज आई। उसने पीछे देखा। हवेली के दरवाजे की दरार से पीतल की बाल्टी झांकती दिखाई दी।
‘आप मुझे बुला रही हैं क्या? उसने पूछा।
‘हां, मैं आपको कई दिनों से देख रही हूं, काफी उम्र हो गई है फिर भी आप इतनी मेहनत कर रही हैं। कोई भी देखकर बता देगा कि आप बीमार हैं। कभी-कभी तो आराम कर लिया करिए। पीतल की बाल्टी ने कहा।
‘अगर आराम करने लगूंगी तो रहूंगी कहां, बीमार तो हूं क्या करूं जब ज्यादा हालत खराब होती है तो ड़ॉ मुन्ना खरादी के पास चली जाती हूं, ठोंक-पीटकर बीमारी दूर कर देता है। फिर काम पर लग जाती हूं, मालिक गरीब है, आराम नहीं दे सकता। अलमुनियम की बाल्टी ने कहा।
पीतल की बाल्टी परेशान हो गई। उसकी परेशानी देख अलमुनियम की बाल्टी ने कहा ‘तुम क्यों परेशान होती हो, तुम्हारे भाग्य में तो राजयोग है। जो चाहें करो, कोई झंझट नहीं।Ó
‘यह सब तो मालिक के भाग्य की बात है। हम लोग तो उनके भाग्य पर ही टिके हुए हैं। उनका भाग्य अच्छा तो अपना भाग्य अच्छा, उनका भाग्य खराब तो अपनी हालत पतली। अच्छा यह बताओ तुम्हारे मालिक करते क्या हैं? पीतल की बाल्टी ने कहा।
अलमुनियम की बाल्टी ने जवाब दिया ‘मेरे मालिक नेता हैं, बुढ़ा गए हैं मेरी तरह, मेरे तल्ले की तरह उनका कुर्ता भी घिस गया है। घर पर ही रहते हैं बीमार। पहले एक समय था कि लोग उनके पास काम कराने के लिए आते थे। वे काम भी करवा देते थे और कुछ लेते भी नहीं थे। सिद्घांतवादी है कभी किसी से कुछ नहीं लिया और लोग ऐसे हैं कि अब उन्हें इज्जत भी नहीं देते, जानते हैं कि वे कुछ लेंगे नहीं।
पीतल की बाल्टी तपाक से बोली ‘अरे मेरे मालिक भी तो नेता हैं। तब तो वो तुम्हारे मालिक को जानते ही होंगे, क्या नाम है तुम्हारे मालिक का?
‘बुद्धू प्रसाद नाम है मेरे मालिक का। तुम्हारे मालिक का क्या नाम है? अलमुनियम की बाल्टी ने कहा।
‘गुरूघंटाल मेरे मालिक का नाम है। वे पास के शहर के सांसद हैं। तुम्हारे मालिक कभी किसी पद पर थे?
अलमुनियम की बाल्टी ने लंबी संास ली और बोली ‘हां तीस साल पहले वह भी सांसद थे।
पीतल की बाल्टी ने अलमुनियम की बाल्टी को हैरत की नजरों से देखा और बोली ‘क्या, सांसद थे। हे राम, सांसद की बाल्टी और यह हाल। सचमुच तुम्हारी तो किस्मत ही खराब है बहन। शायद यह तुम्हारे मालिक के बुरे कर्मों (ईमानदारी) का फल है। मुझे देखो हमेशा पुछी-धुली-खाली पड़ी रहती हूं। नाम की बाल्टी हूं माह में एक दो बार ही पानी से संपर्क होता है। कोई काम नहीं है। आराम ही आराम है। कितने अच्छे मालिक हैं मेरे जेट पंप लगवा रखा है, बाल्टी में पानी रखने की जरूरत ही क्या? टोंटी खोलो और ले लो जी भर के पानी।
अलमुनियम की बाल्टी को पीतल की बाल्टी से जलन हुई। उसने पलटकर कहा ‘पहले से पैसे वाले होंगे तुम्हारे मालिक, तभी तो तुम जैसी मंहगी को छत पर कबाड़ की तरह रखे हुए हैं। कितनी बाल्टियां हैं तुम्हारे मालिक के पास।
‘बाल्टियां तो काफी हैं। प्लास्टिक, लोहे, अलमुनियम सभी की बाल्टियां हैं। सब पड़ी हैं छत पर। वे भी दिन भर आराम करती रहती हैं। मैं उनसे नहीं बोलती हूं। जरा सी लिफ्ट मारो तो सब सर पर चढऩे लगती हैं। मेरे स्टेटस को वो क्या जानें, बैकवर्ड कहीं के। हां मेरे मालिक पहले पैसे वाले नहीं थे। वो पंद्रह सौ की नौकरी मेरे पुराने वाले मालिक ‘बाबूलाल पीतल की बाल्टीवाले के यहां करते थे। उन्हें मुझसे काफी प्यार था। दुकान में आते, सबसे पहले मुझे ही साफ करते। यह देख वहां की बाकी सभी बाल्टियां मुझसे जलने लगी थीं। मैं भी अपने मालिक ‘गुरूघंटाल की खूब मदद करती थी। बाबूलाल जब भी दुकान उनके भरोसे छोड़कर जाता तो गुरूघंटाल गल्ले से दस-बीस रूपए निकालकर मेरे अंदर डालकर रख देता और जाते समय निकाल लेता। धीरे-धीरे उन्होंने राजनीति में हांथ पैर मारे और पहले सभासद और फिर सीधे सांसद बन गए। जब वह सभासद बने थे तब उन्होंने रेलपटरी के पास वाली कॉलोनी में घर लिया था। जिस दिन गृहप्रवेश का कार्ड देने रामबाबू के पास आए थे उसी दिन मुझे पूरे हक से अपने साथ ले गए, हां वह पहला दिन था जब उन्होंने बाबूलाल के सामने ही गल्ले से पांच हजार रुपए निकाल लिए थे। तीन माह में ही ऐसी किस्मत बदली कि यह हवेली खरीद ली। नजर न लगे मेरे मालिक को भगवान का दूसरा रूप हैं वो, आधुनिक कुबेर पुत्र। पीतल की बाल्टी ने कहा।
‘तुम्हारे मालिक किस पार्टी के हैं, बहना? अलमुनियम की बाल्टी ने पूछा।
‘क्या बात कर रही हो दीदी, चमत्कारी हैं वो, अपनी दम पर लड़ते हैं। बंदूक और बम का शायद ही कोई ऐसा खेल हो जो उन्होंने न खेला हो। सभी नमस्कार करते हैं, इतना तो जानती ही होगी ‘भय बिन होय न प्रीत। आदर्श हैं, समझो तो कह सकती हो कि आधुनिक राजनीति के अग्रदूत हैं वो। रही बात पार्टी की तो सभी में उनके दोस्त हैं पर वो चुनाव हमेशा निर्दलीय लड़ते हैं। घंटी-घंटा जो भी निशान मिल जाए। वे जानते हैं कि लोग खाना खाना भूल सकते हैं पर उनको वोट देना नहीं।
अलमुनियम की बाल्टी अपनी किस्मत को कोसते हुए बोली ‘कितना नालायक और निकम्मा है मेरा मालिक, मर गया ईमानदारी में, बुद्घू कहीं का। नासपीटा खुद तो मरा ही मरा हमको भी ले मरा। सांसद था, तब भी कुछ न कर पाया। अच्छा किस्मतवाली बहन मेरी एक बात मानोगी?
पीतल की बाल्टी ने ओज भरे स्वर में कहा ‘हां, बोलो, क्या बात है?
‘बहन बहुत दिनों से मेरा मन कर रहा है कि मैं तुम्हारे घर को अंदर जाकर देखूं। ऐसा घर मैंने बाहर से आजतक नहीं देखा है। यह तो भलीभांती जानती हूं कि अंदर से तो इंद्रप्रस्थ की तरह ही होगा। अलमुनियम की बाल्टी ने कहा।
‘अरे, यह कौन से बड़ी बात है। आज शाम को ही आ जाना। दंग रह जाओगी अंदर से मेरा घर देखकर। इंद्रप्रस्थ से कम नहीं ज्यादा ही होगा। इतराते हुए पीतल की बाल्टी ने जवाब दिया।
‘देखो बहन, मैं कल सुबह आऊंगी। शाम को आना संभव न होगा। सुबह ही निकलने को मिलता है। अलमुनियम की बाल्टी ने कहा।
‘क्या कहा दीदी, कल तो हम पहाड़ के पीछे वाली नई कोठी में चले जाएंगे। मालिक ने नई कोठी खरीदी है। इससे भी बढिय़ा है। सुबह जल्दी ही निकलना होगा। ऐसा करो कि तुम परसों सुबह किसी न किसी बहाने वहां चली आना। दीदी कहा है, यह इच्क्षा तो पूरी ही करूंगी। पीतल की बाल्टी ने विनम्रता से कहा।
अलमुनियम की बाल्टी बोली ‘किस्मत इसबार भी घोखा दे गई। वहां तो आना नहीं हो पाएगा। हां एक बात बताओ इतना पैसा कहां से आता है तुम्हारे मालिक के पास।Ó
‘अरे तुम तो पूरी पगली हो दीदी। इतना भी नहीं समझ पाईं, निर्दलीय सांसद हैं मेरे मालिक। जब भी मौका मिलता है, बिक जाते हैं, करोड़ों में। इस बार भी बिके हैं। भगवान करें हर साल उन्हें बिकने का एक न एक अवसर तो जरूर मिले और वे अपनी हवेलियों की संख्या में वृद्घि करें। जुगजुग जिएं मेरे मालिक। लाखों में एक मेरे बिकाऊ मालिक।Ó पीतल की बाल्टी ने नाचते हुए कहा।
पीतल की बाल्टी की यह बातें सुन बेचारी किस्मत को कोसती अलमुनियम की बाल्टी जोर-जोर से रोते, अपनी किस्मत को कोसते घर की ओर जाते हुए बोली ‘हाय रे मेरी किस्मत, न हुई निर्दलीय की बाल्टी।

शरद अग्निहोत्री
109/271 राम कृष्ण नगर,
कानपुर-208012

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