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लोकपाल बिल का नाम सुनकर एक लम्बे चौड़े प्रपत्र का स्वरुप बहुत कम लोगो के ज़ेहन में आता है| सामान्यतः लोकपाल बिल का नाम सुनकर “अन्ना हजारे और उनके साथ इकट्ठे जनसैलाब” का स्वरुप मन में आ जाता है|
इस लोकपाल बिल को पास करने के लिए जंतर मंतर पर अन्ना हजारे और जनसमूह द्वारा प्रदर्शन और अनशन करने का उद्देश्य भ्रस्टाचार को जड़ से ख़त्म करना था| पर यहाँ तो उलटी गंगा बहती दिख रही है| यहाँ के सियासी नेता अन्ना हजारे के संघर्ष के इर्द गिर्द तो घूमते है पर इनका उद्देश्य तो कुछ और ही है, भैया इन नेताओं की महिमा तो मेरी समझ के बाहर है| नेताओं की टिपण्णी, एक दुसरे पर आरोप की आदत तो कभी नहीं जाएगी| अब तो कभी “बाबा” ने अपनी “बाबागिरी” दिखाते हुए लोकपाल की समिति में परिवारवाद बताया और ये विवाद ख़त्म नहीं हो पाया थ की यहाँ “सी.डी. कांड” नाम का नया नाटक शुरू हो गया है| अब इस नाटक को देखकर मै ताली बजाऊं, आंसू बहाऊं,या चुपचाप बैठ कर देखता रहूँ| मुझे तो कुछ भी समझ में नहीं आ रहा, पता नहीं लोकपाल बिल के लागू होते होते न जाने कितने और नाटक देखने का मौका मिलेगा| ——-शरद शुक्ला, फैजाबाद
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