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किसानो के “हित में नीति” या किसानो पर “राजनीति”?

dobara sochiye
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किसानो के “हित में नीति” या किसानो पर “राजनीति”?

टीम कांग्रेस के “युवराज” राहुल गाँधी जी आज कल किसानो के इर्द गिर्द घूम कर उनके बीच में अपनी जगह बनाने के लिए पूरी जी जान से लगे हुए है| वैसे ये पहली बार नहीं है जब राहुल गाँधी ऐसा कर रहे है| इसके पहले भी ऐसी ही बाते खबरों में सुर्खिया बनती रही है | कभी राहुल गाँधी दलित के घर भोजन करते है तो कभी मजदूरों के साथ काम करते है| पर प्रश्न ये है के आखिर राहुल गाँधी जी के इन सब कामो को करने का उद्देश्य क्या है? चाहे राहुल जी के ये सब करने के पीछे समाजसेवा की भावना ही क्यों न हो, पर चूँकि ये राजनीति में है इस लिए एक आम आदमी मन में कुछ और ही छवि बन जाती है| ये बात दोबारा सोचने वाली है जहा एक तरफ देश का हर आम नागरिक प्रायः बढती महंगाई से परेशान है, एक गरीब आदमी अपनी दो वक़्त की रोटी के लिए संघर्ष कर रहा है तो वही दूसरी तरफ कांग्रेस महासचिव राहुल गाँधी जी ये सब करते है तो बात कुछ हजम नही होती| अभी कल(९-७-२०११) की ही बात है जब राहुल गाँधी जी ने अलीगढ में एक महापंचायत का आयोजन किया| यहाँ भी सुरक्षा के कड़े इंतज़ाम थे, तीन-तीन मंचों का निर्माण हुआ था| इस सभा में राहुल गाँधी जी हेलीकाप्टर से आये क्योकि वो ये नहीं चाहते थे की उन्हें अलीगढ पहुचने के पहले उन्हें किसी आरोप के आंड में में गिरफ्तार न कर लिया जाए| इस सभा में राहुल गांधी ने किसानो से सीधे बात की और उनकी सवालों को सुना| यहाँ पहुचकर उन्होंने मायावती सरकार को किसान विरोधी बताया और कहा की उत्तर प्रदेश के अफसरों से ज्यादा जानकार तो यहाँ के किसान है |
मै खुले शब्दों में ये बात कहना चाहता हु की अगर राहुल जी के ये सब काम करने के पीछे कोई राजनीतिक उद्देश्य है तो अगर वो ये सोचते है की इस से उन्हें कोई फायदा होगा तो ये बात अगर वो भूल जाए तो ही अच्छा है , क्योकि तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल के चुनावों में जनता ने जिस तरह से अपना ‘जनादेश’ दिया है उस से ये पता चल गया है की भारतीय जनता अब अपनी नींद तोड़ चुकी है| मै सिर्फ राहुल गाँधी जी की ही बात नहीं कर रहा अपितु मै सभी राजनीतिक पार्टियों से कहना चाहता हु की अब रैलियों और प्रदर्शनों से ज्यादा कुछ फायदा नहीं मिलने वाला, क्योकि जनता अब अपना जनादेश देने में समर्थ हो गयी है|
अब मै आप से पूछना चाहता हूँ “एक किसान जो दो वक़्त की रोटी के लिए दिन भर मेहनत करता है और तब भी अपने माथे पर दुःख की एक शिकन नहीं आने देता क्या उसी किसान पर राजनीति करना ठीक है?”
————शरद शुक्ला, फैजाबाद

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