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“ये कैसा विकास “

dobara sochiye
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“ये कैसा विकास ”
आप इसे पढ़ें इसके पहले मेरी आपसे विनती है की आप इसे पढने के बाद ये न कहियेगा की “शरद जी” आप तो हर चीज का नकारात्मक रूप हमारे प्रत्यक्ष रख रहे है| मेरा मानना यह है की यदि हम अपने कमजोरियों और नकारत्मक पहलुओ को अपने सामने लायेगे तभी हम सही ढंग से विकास कर सकेंगे| अगर ठीक ठीक विकास के लिए एक कदम पीछे जाना पड़े तो जाइए परन्तु ये सोचकर जाइए की अगला कदम हमारे पिहले कदम से अच्छा होगा| भारत देश ने विकास तो किया, पर यहाँ के भ्रष्ट सियासी दलों के नेताओ ने कुछ ज्यादा ही विकास कर लिया| यहाँ के भ्रष्ट नेताओं की तो दाद देनी पड़ेगी क्योकि किसी देश का जितना वार्षिक बजट जितना होता है उस से अधिक तो ए.राजा अकेले खा गए| हाँ पर भाई ये बात है की लोकपाल बिल के लागू होने पर इन नेताओं की खुराक पर खासा असर पड़ेगा| इनकी बात तो आगे करते है क्योकि इतने बड़े लोगो का वर्णन ससम्मान करना पड़ेगा| विकास की बात करने वाले लोगो को मै बताना चाहता हूँ की यदि हम जल संरक्षण की बात करे तो हम पाते है की भारत देश में इज़राइल के मुकाबले पांच गुने से भी अधिक वर्षा होती है पर फिर भी इज़राइल में पानी का कोई अभाव नहीं है और भारत में जल की समस्या कितनी है ये तो बताना जरुरी नहीं, इस से तो आप अच्छी तरह रूबरू है| ये तो हो गयी जल की बात अब आते है थल पर, मुझे याद है कक्षा ५ से लेकर कक्षा ८ तक जब कभी भी “इंडियन फार्मर” पर निबंध आया तो मेरी पहली पंक्ति होती थी-“इंडिया इज ए अग्रिक्ल्चेर कंट्री(भारत एक कृषि प्रधान देश है)” शायद आपने भी यही लिखा होगा| पर अगर कृषि हेतु उपयुक्त भूमि की बात करे तो महाशक्ति चीन और अमेरिका, भारत के सामने बौने है| पर फिर भी कृषि के मामले में हम पिछड़ते जा रहे है| इसमें भी प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से इन सियासी दलों का ही हाथ है| अगर हम छोटे स्तर पर बात करे तो बात करते है अपने शहर फैजाबाद की, यहाँ इसके हृदय में स्थित है “गुलाब बाड़ी का मैदान” इसको बनवाने का उद्देश्य तो कुछ और था पर वर्तमान समय में यह मात्र राजनीतिक और सियासी दलों का अखाडा बन कर रह गया है | चुनावी गर्मी के दिनों में तो महीने भर में तो कम से कम दो बार तो अवश्य ही किसी राजनीतिक दल के प्रदर्शन का स्थल बनता रहता है|
अब आते है शिक्षा पर, वैसे तो हर कोई ये दावा करता है की आने वाले १०-२० सालों में भारत में डॉक्टर और इंजीनियर की संख्या अन्य देशों के मुकाबले बहुत ज्यादा होगी पर ये बहुत कम लोग जानते है की पूरे दुनिया के १/३ भाग निरक्षर और अनपढ़ भारत में रहते है| जब भी कभी हमारे देश में बजट पास होता है तो अगले दिन सबकी निगाह अखबारों पर होती है, लोग देखते है की कौन सी चीजे सस्ती हुयी और कौन सी महंगी| जब कभी देश में क्रिकेट का कर्मयुद्ध खेला जाता है तो भी लोग अखबार बहुत ध्यान से पढ़ते है पर ये हम नहीं जानते की आज भी हमारे देश में ४० करोड़ लोग ऐसे है जो पढना ही नहीं जानते| हम बड़े गर्व से कहते है की हम उस भारत में जन्मे है जहा शिक्षा का उदय हुआ, पर लोग ये नहीं जानते की भारत में अब जन्म लेने वाले बच्चो में से कम से कम २०% बच्चे शिक्षा से अछूते रह जाएंगे| देश के बजट के लिए विश्यविख्यात अंतररास्ट्रीय मैनेजमेंट गुरु और आई.आई.पी.एम. के डीन श्री अरिंदम चौधरी के अनुसार देश के बजट में शिक्षा के लिए अधिक सुविधा देनी चाहिए, पर मै सोचता हूँ की सुविधा मिले या नहीं बस ठीक ठीक हर भारतीय साक्षर हो जाये| अरिंदम जी ने सर्व शिक्षा अभियान में लगने वाले बजट को चार गुना करने पर बल दिया है| एक सर्वे के अनुसार हमारे देश में शिक्षा के ऊपर सरकार द्वारा मात्र ३% धन शिक्षा पर खर्च किया जाता है और इसका नतीजा तो ये है की भारत में साक्षर बहुत कम ही है| इसकी तुलना यदि हम क्यूबा जैसे देश से करे तो वहा पर सरकार द्वारा १८% धन शिक्षा पर खर्च किया जाता और इसका परिणाम यह है की वहा ९९% लोग साक्षर है|
आज के युग में विद्यालय में छात्रो को बस पढाया जाता है और कक्षा १२ के बाद बस यही सोचता है की अब क्या करना है? इसी प्रश्न एक उत्तर के लिए दुनिया की भीड़ देखता है और एक संकुचित मानसिकता वाले व्यक्ति की तरह सोचता है की अगर आई.आई.टी. का फॉर्म भर दिया तो इंजिनियर बन जाउगा, एम.बी.ए. किया तो कही मैनेजमेंट सेक्टर में मेनेजर और सी.पी.एम.टी. का फॉर्म भर दिया तो डॉक्टर पक्का बन जाउगा| वो ये नहीं सोचता की वह इस दौड़ में अकेला नहीं है| भारत देश के ८०% लोग मानते है की नेता भ्रष्ट है, और ये सही है क्योकि…….५ करोड़ से १० करोड़ रुपये की राशि एक लोकसभा प्रत्याशी लोकसभा चुनाव में खर्च करता है| २ करोड़ रुपये के आसपास की धनराशि विधानसभा प्रत्याशी खर्च करता है विधानसभा चुनाव में| पर सबसे बड़ी बात तो ये है की ७१% लोगो की ६ साल पहले भी यही राय थी, इस पर मुझे दो पंक्तिया याद आ रही है—-
“ये तो सच है की तुम्हारे पैरों के नीचे ज़मीन नहीं है,
पर बड़ी बात है की तुम्हे अब भी यकीन नहीं है”

चलिए अब बात करते है कोर्ट और कचहरियों की, वर्तमान समय में इतने अधिक मामले कोर्ट और कचहरियों में है की उनकी गिनती करना टेढ़ी खीर है| इसका प्रमुख कारण तो ये है की इन मामलो का निपटारा करने में समय बहुत लगता है और फिर भी अगर इन मामलो की सुनवाई और निपटारा जल्द करना हो तो कम से कम १० गुने अधिक कचहरियों और ८० से ९० गुने अधिक न्यायाधीशों की जरुरत होगी| अगर इन कचहरियो में चलने वाले मुकदमो को दाखिल करने वालो का पता किया जाए तो शायद आधे से ज्यादा लोग कोर्ट के निर्णय के इंतज़ार में परलोक सिधार चुके होंगे| अब इस पूरे लेख को पढने के बाद अपने चारों ओर देखिये और सोचिये सियासी गद्दी पर काबिज़ लोग हर बार ५ वर्ष में विकास के वादे करते है| हर ५ वर्ष बाद सरकारें आती है और चली जाती है पर इनकी विकास के झूठे वादे करने की आदत नहीं जाती| और अंत में मै आपसे बस यही पूछना चाहता हूँ की “ये कैसा विकास” है|
. ………….शरद शुक्ला
(आप अपनी प्रतिक्रिया सीधे मुझे एस.एम.एस. भी कर सकते है- 9044559799, या ट्विटर-sharad619, या ई.मेल करें- iamlucky619@gmail.com )

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