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जनता ‘भगवान’ है, कर्म करने पर ही फल देगी सरकार

तीखी बात
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farmernewn


देश की मोदी सरकार भले ही देश के विकास के बारे में सोचती हो, विदेश में नाम कमा रही हो, लेकिन ऐसे कई मुद्दे हैं जिन पर मोदी सरकार या कहें कि बीजेपी सरकार फेल होती दिखती है। सबसे ज्वलंत मुद्दा जो आम आदमी से जुड़ा है, वो है पेट्रोल डीज़ल के बढ़ते रेट का मुद्दा और किसानों की कर्जमाफी का मुद्दा। भले ही सरकार ने पेट्रोल-डीजल के रेट तय करने का अधिकार प्राइवेट कंपनी को दे दिया हो, लेकिन उसे ये नहीं भूलना चाहिए कि इसी पेट्रोल-डीज़ल से आम आदमी की कमाई सीधे जुड़ती है। महंगाई सीधे जुड़ती है, लेकिन सच तो ये है कि पेट्रोल और डीज़ल पर लगाम लगा पाने में मोदी सरकार विफल हुई है। ये ऐसी आलोचनाएं हैं जो करनी पड़ेंगी, क्योंकि शासन जब आम जनता के हित से अहित में बदल रहा हो तो उसे आइना दिखाना ज़रूरी है और उसी के लिए मेरा ये आज का लेख है।


सवाल ये है कि पेट्रोल और डीज़ल पर रेट कम होने के बजाए बढ़ क्यों रहे हैं। देश में पेट्रोल और डीज़ल की कीमतें अपने 3 साल के सबसे उच्चतम स्तर पर पहुंच गई हैं, जिससे उपभोक्ता चिंतित है। लोग सोच रहे हैं कि पेट्रोल और डीज़ल के अच्छे दिन कब आएंगे। लोगों का मानना है कि जब इन उत्पादों पर लगने वाले करों में बार बार फेरबदल किया जा रहा हो, तो बाज़ार आधारित कीमतों का कोई मतलब नहीं रह जाता और वो भी तब जब कच्चे तेल के दाम लगातार गिर रहे हैं। तो फिर देश में पेट्रोल और डीज़ल की कीमतें क्यों बढ़ रही हैं, ये बड़ा सवाल है।


2014 के मई में कच्चे तेल की कीमत 107 डॉलर प्रति बैरल थी उस वक्त अभी से सस्ता पेट्रोल मिल रहा था। ये सच है कि पिछले तीन महीनों में कच्चे तेल की कीमतें 45.60 रुपये प्रति बैरल से लेकर अभी तक 18 फीसदी तक बढ़ी है, जिसका नतीजा है कि दिल्ली में पेट्रोल की कीमत 65.40 रुपये से बढ़कर 70.39 रुपये तक पहुंच गई है।


एसोचैम के नोट में भी कहा गया है कि जब कच्चे तेल की कीमत 107 डॉलर प्रति बैरल थी, तो देश में ये 71.51 रुपये लीटर बिक रहे थे। अब जब घटकर 53.88 डॉलर प्रति बैरल आ गया है, तो उपभोक्ता तो ये पूछेंगे ही कि अगर बाज़ार से कीमतें निर्धारित होती हैं तो इसे 40 रुपये प्रति लीटर बिकना चाहिए। मगर ऐसा नहीं है। हालांकि, पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान कह रहे हैं कि दिवाली तक पेट्रोल डीज़ल के दाम घट सकते हैं, तो अभी तक साहब क्यों सोते रहे, क्योंकि पिछले तीन साल में कच्चे तेल के रेट घटकर आधे रह गए हैं और पेट्रोल डीज़ल के रेट बढ़ते ही चले गए।


उसमें भी नए नए केंद्रीय पर्यटन राज्य मंत्री बने अल्फोंस कनन्थानम अपने बयान से जले पर नमक छिड़कने का काम कर रहे हैं। साहब का कहना है कि पेट्रोल-डीज़ल खरीदने वाले लोग भूखे रहने वाले नहीं है, तो साहब ये बात आप न बोलें तो ही अच्छा है। क्योंकि आपको तो पेट्रोल डीज़ल सरकारी खर्चे पर मिल जाता है और रही बात आम आदमी की वो तो गरीब है और नेताओं के बदलते चेहरे देखकर थोड़ा गुस्सा और थोड़ा संतोष कर लेता है। और करे भी क्यों न, क्योंकि 5 साल का वक्त उसने पूरा दे दिया है।


अब किसानों का ही हाल देख लीजिए। उत्तर प्रदेश में किसानों के साथ बड़ा ही भयंकर छल हुआ है। योगी सरकार किसानों के कर्जमाफ करने का बड़ा वादा लेकर आई थी, लेकिन किसानों के कर्ज माफ जब 5 पैसे से लेकर 10 रुपये तक हुए तो देखकर बडा आश्चर्य हुआ। मन में विचार आया कि किसान क्या इतने गरीब हैं, जो 5 पैसे से लेकर 10 रुपये तक नहीं चुका सकते। वाकई बड़ी ही हैरान करने वाली बात है। जब सरकार ने कर्ज माफ ही किया है और उसकी तय सीमा एक लाख रुपये रखी है, तो साहब मेरी तो ये दरख्वास्त है कि कुछ हज़ार रुपये नहीं देखने चाहिए। मगर पता नहीं सरकार और उनकी बैंक कौन सा बीजगणित का फॉर्मूला लगा रही है, जिससे किसानों की कर्जमाफी 5 पैसे तक भी बैठ जाती है।


सोचो जिस किसान का कर्ज अभी 10 हज़ार रुपये बचा हो और उसने बड़ी ही ईमानदारी से कर्ज चुकाया हो औऱ सरकार के कर्जमाफी के ऐलान के बाद उसने सपना देखा हो और वो उसके सामने 5 पैसे के रूप में आए, तो क्या आपको वो दोबारा वोट देगा। शायद नहीं, क्योंकि भगवान भी फल उसको देते हैं जो सकारात्मक कर्म करता है और नेताओं के लिए जनता भगवान समान है, जो सरकार कर्म नहीं करती उसे जनता फल नहीं देती। ध्यान देने वाली बात है, इसलिए सोचिए समझिए फिर चिंतन करिए और जनता के हित के बारे में ही सोचिए और उसमें भी अच्छा तब रहेगा जब खुद जनता बनकर सोचिए।

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