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कुचल-कुचल कर अपनी उंगली के बल पर !

agnipusp
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यह रचना मान्यवर संतोष जी एवं सभी देशप्रेमियों को समर्पित :——-
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गूंगे-बहरे बैठ गए हैं संसद में,  इनको हम सरकार किसलिए कहते हैं !
हमने ऐसा गलत क्या कहा बतलाओ, चुनकर भेजा इसीलिए सब सहते हैं !!
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लोकतंत्र का पावन मंदिर संसद है, नियम-नीतियों का विनियामक संसद है !
बापू के सपनों की भाषा संसद है, जन-जन के आँखों की आशा संसद है !!
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उसको कौआखाना तुमने बना दिया, उछल-उछल जिमखाना तुमने बना दिया !
अपना चंडूखाना तुमने बना दिया, और कहें क्या तुमने क्या-क्या बना दिया !!
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गाल बजाना बंद करो, कुछ काम करो, दोषारोपण बंद करो, कुछ काम करो !
मूर्ख बनाना बंद करो, कुछ काम करो, नशा पिलाना बंद करो, कुछ काम करो !!
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पीछे मुड़कर देखो नेहरु-गांधी को, लोहिया, लिमये, नारायण, इंदिरा गांधी को !
पन्त, प्रसाद, शास्त्री, राधाकृष्णन को, देखो जे०पी० को अन्ना की आंधी को !!
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लोकतंत्र की परिभाषा फिर से पढ़ लो, मन में सत्य-अहिंसा की मूरत गढ़ लो !
नागरिकों की पेशानी के बल गिन लो, या भैंसा पर चढ़ो या कि पुष्पक चढ़ लो !!
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चेतो, वरना उलटी आँधी आयेगी, जनता अपना चंडी रूप दिखायेगी !
कुचल-कुचल कर अपनी उंगली के बल पर, आनेवाले कल को मज़ा चखाएगी !!!

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