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नियमों की समीक्षा

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अभी हाल ही में मैं एक प्रशिक्षण दे रहा था, वहाँ पर एक वाकया हुआ जो मुझे मजेदार लगा और गंभीर भी | प्रायः इस तरह के प्रशिक्षण होने पर एक उपस्थिति रजिस्टर बनाया जाता है, जिसमे सुबह आते समय व शाम को जाते समय सभी को हस्ताक्षर करने होते हैं |

प्रशिक्षण के अंतिम दिवस प्रशिक्षण समाप्ति के बाद जब शाम के हस्ताक्षर के लिए मैं उपस्थिति रजिस्टर को प्रशिक्षण कक्ष में ले गया तो अचानक हस्ताक्षर करने के लिए भगदड़ सी मच गई | हर व्यक्ति पहले हस्ताक्षर करके जल्दी से घर जाना चाहता था | मैंने इसको देखते हुए घोषणा की कि मैं सभी को नाम के क्रम से बुलाते हुए हस्ताक्षर करवाऊंगा | सभी ने बोला ‘ हाँ ठीक है ‘ लेकिन जैसे ही मैंने रजिस्टर अपने हाँथ में लेनी चाही तो जो भी व्यक्ति हस्ताक्षर कर रहा था बोला – “हाँ क्रम से करवा लीजिएगा, बस मैं कर लूँ ” और वह क्रम चलता रहा |

मुझे इस बात पर हंसी आ गयी | साथ ही मन में एक प्रश्न भी उठा की हम सभी को नियम पसंद हैं और हम उन नियमो के लिए सहमत भी है लेकिन हम में से कोई भी नहीं चाहता कि नियम स्वयं के ऊपर लागू हो | सभी यही चाहते हैं कि नियमो का पालन दूसरा व्यक्ति अवश्य करे | यह एक गंभीर मुद्दा है | इस बात पर एक विचारणीय प्रश्न और भी है कि हमारे लिए जो भी नियम बनाते हैं क्या वह स्वयं उन नियमों का पालन करते हैं ? हमारे लिए कोई भी नियम या कानून हमारे माननीय संसद और विधायक बनाते हैं लेकिन क्या वह स्वयं उन नियमों का पालन करते हैं ? हाँ वह आते उन कानून और नियमों के अंतर्गत अवश्य हैं |

एक उदाहरण के लिए आयकर को ही ले लीजिये | हमारे देश में प्रत्येक व्यक्ति जो कही से भी वेतन पाता है उसे अपनी आय पर टैक्स अवश्य ही देना होता है | लेकिन हमारे माननीय सांसद और विधायकों को उनकी उच्च आय पर भी टैक्स नहीं देना पड़ता है | क्योकि उनकी आय नौकरी में नहीं अपितु सेवा में गिनी जाती है और सेवा पर कोई भी टैक्स नहीं लिया जाता है |

ठीक है, यदि हम इस बात को सत्य मान ले कि हमारे माननीय नौकरी नहीं सेवा कर रहे हैं तो हम इस बात से भी मुंह नहीं फेर सकते कि देश की सरहद पर खड़े जवान भी नौकरी नहीं सेवा कर रहे हैं, देश के अस्पतालों में रात्रि में इमरजेंसी में ड्यूटी करने वाले डॉक्टर भी सेवा कर रहे हैं और होली, दीपावली , ईद आदि समस्त त्यौहारों में भी अपने घर-परिवार से मीलों दूर दूसरों को घर पहुंचाते रेलवे के लोको पायलट और गार्ड भी नौकरी नहीं सेवा कर रहे हैं | तो इन लोगो की आय पर टैक्स लगाना कहाँ तक उचित है?

अतः मैं आप सबसे इन प्रश्नों का उत्तर चाहता हूँ कि सेवा और नौकरी के मापन का पैमाना क्या है? क्या सेवा पर कुछ विशिष्ट लोगों का ही अधिकार है? हम नियमों से क्यों बचना चाहते हैं, जबकि वही नियम हमें दूसरों के प्रति बहुत ही उचित दिखाई पड़ते हैं? इसका उत्तर हमें और कोई नहीं दे सकता वरन ये प्रश्न हम स्वयं से कर के ही इनका उत्तर पा सकते हैं|

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