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उपन्यास – विद यू विदाउट यू लेखक – प्रभात रंजन

एहसासों की आवाज़
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उपन्यास – विद यू विदाउट यू
लेखक – प्रभात रंजन

आज हम समीक्षा कर रहें हैं प्रभात रंजन के लिखे उपन्यास “विद यू विदाउट यू” की जो अपने विमोचन के कुछ ही दिनों में अमेज़न बेस्टसेलर की लिस्ट में आ गया है .

कहानी,किरदार –

कुछ सालों पहले जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में जावेद अख्तर साहब ने गुलज़ार साहब की मौजूदगी में भारतीय कहानी लेखन शैली पे एक बात कही थी .उन्होंने उस परिचर्चा में बताया था कि भारतीय दर्शक और पाठक वर्ग “क्या हुआ ”की जगह “कैसे हुआ ”को तरजीह देते हैं .यही वजह है भारत में कथा से ज़्यादा पटकथा पे ज़ोर दिया जाता है .प्रभात रंजन का उपन्यास “विद यू विदाउट यू” एक उम्दा कथा और पटकथा का बेहतरीन संतुलन है .कहानी तीन दोस्तों आदित्य ,निशिन्द ,रमी के बचपन से शुरू होती है और लड़कपन में पहुँच कर एक ऐसा मोड़ लेती है जिससे आने वाले कई वर्षों के लिए तीनों की ज़िंदगी में बड़े बदलाव हो जाते हैं .इस मोड़ के पीछे एक प्रेम त्रिकोण का होना है .कहानी का मुख्य किरदार या कहें सूत्रधार निशिन्द का एक फैसला आने वाले वक़्त में उसके अपने दोस्त आदित्य और रमी के साथ बचपन से रही दोस्ती को अजीब रास्ते पे ले आता है है .भविष्य में इनके रिश्ते कुछ करवट लेंगे ये तो तय लगता है मगर समय के साथ इन तीनों के प्रेम त्रिकोण में कैसे परिवर्तन होता है ये लेखक ने बहुत अच्छे तरीके से अपने लेखन के ज़रिये दिखाया है .इस उपन्यास के बारे में एक बात और गौर की जानी चाहिए और वो ये कि आज जब रोज़ाना ही बीटेक और एमबीए के कॉलेज रोमांस पे उपन्यास धड़ल्ले से लिखे जा रहे हैं उस वक़्त लेखक खुद इंजीनियर होकर एक ऐसी कहानी को चुनते हैं जो उपन्यास लेखक के बुनियादी उसूल “कालांतर की एक लम्बी यात्रा ” को चरित्रार्थ करती हैं .कहानी शुरू में आपको जोड़ने में थोडा वक़्त ले सकती है मगर धीरे धीरे जब आप १० पन्ने पढ़ लेंगे तो फिर कहानी अपनी रफ़्तार पकड़ लेती है .कहानी को बहुत तसल्ली से लिखा गया है और इसी के चलते कुछ जगह लगता है कि कुछ पेज एडिट किए जा सकते थे मगर फिर ये भी याद आता है कि घटनाओं को बुनने के लिए पहले उनकी बुनियाद बनाने पे भी ध्यान देना होता है .कुल मिलाकर एक अच्छी किताब जिसे हर पढने वाले को ज़रूर पढना चाहिए .

भाषा

मौजूदा नस्ल के युवा लेखकों से हिंदी के आलोचकों ,समीक्षकों और पत्रकारों की ये शिकायत रही है कि वो भाषा के बहुत ज़्यादा प्रयोग कर के भाषा के साथ नुकसान कर रहे हैं .इसके जवाब में नए लेखक कहते हैं कि गूढ़ और गम्भीर लेखन लोगों को आकर्षित करने में सफल नहीं होता इसलिए अंग्रेज़ी के शब्दों को शामिल करना मजबूरी है .
प्रभात रंजन का ये उपन्यास आज के समय के उन चुनिन्दा उपन्यासों में एक है जिसमें भाषा को बिलकुल सरल और सहज रखा गया है जिसके चलते हर इन्सान कुछ पलों में कहानी और उसके किरदारों के साथ जुड़ जाता है .यूं तो भाषा में किसी भी किस्म के गैरज़रूरी प्रयोग से परहेज़ रखा गया है मगर किरदारों के जीवन के स्तर और उनके रहन सहन माहौल को ध्यान में रखते हुए ज़रूरी शब्दों का इस्तेमाल भी किया गया है .एक ओर उपन्यास में क्लासिक उपन्यास लेखक की झलकियाँ मिलती हैं तो दूसरी तरह मॉडर्न हिंदी लेखन आकर्षित करता है .
ये किताब कहानी के कई अलग अलग अंशों में समाज के नज़रिये पे भी एक आत्ममंथन की ज़रूरत को महसूस कराने में सफल साबित होती नज़र आती है .
कुछ मिलाकर एक अच्छी किताब के लिए किताब के लेखक को बहुत बधाई .आप भी किताब को ज़रूर खरीदें .

किताब अमेज़न पे उपलब्ध है .24129774_339830923160207_1053492697434134974_n

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