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बनो आज की नारी!

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बनो आज की नारी!

एक दिन अचानक भोजपुरी महिला मित्र मिल गयी तो हाल-चाल पूछने पर,हाव-भाव से उनके उदास होने का पता चला| हमने उनसे उनकी उदासी का कारण जाना| इसी सम्बन्ध में उनसे हुई वार्तालाप की अभिव्यक्ति एक रचना के रुप में प्रस्तुत है-

इक दिन मिल गयी सखी खास
देख, मन हो उठा उल्लास
पूछी ख़ैरियत और मिजाज़
जाने देख हुआ अहसास
है उसका मन निराश
पूछ लिया हमने उससे
क्यों हो इतनी उदास?
पहले वो झिझकी हमसे
करने को कुछ बतियाँ
फिर एकाएक फूट पड़ी वो
अश्रु भरकर अखियाँ
का बताये तुमको बहना
अब तो घुट-घुट कर रहना
ना कोई करने को बतियाँ
ना कटे दिन और रतियाँ
पूछ लिया हमने उससे
कैसे हैं पतिदेव के मिजाज़?
करते हैं झगड़ा व रहते हैं नाराज़?

तपाक से वह बोली-
अरे! ना-ना, का बात करती हो बहना
उ तो है बड़े सज्जन, उनका का कहना
बनवाते हर उत्सव पे गहना
देते सरप्राइज और सांत रहना
बैठे बड़े ओहदे पर उ
पर ना करते कभी मुँह से चूँ
जब पड़ जाती बिस्तर पे हम
दवायें अपने से उ देते
बच्चों का भी ध्यान उ रखते
बढ़िया भोजन भी बनाके खिलाते
करते दिन-रात उ सेवा

इतना ही नही, जब जाते उ विदेस
लाते कीमती उपहार और वेस
सोप्पिंग को जब जाती हम
एटीएम कार्ड थमा देते
हमे,बच्चों को मॉल घुमाते
सनीमा भी खूब दिखाते

ना पीते मदिरा,ना करते अय्यासी
इक नहीं है लत नासी
रूप खपसूरत रंग है चोखा
अंग्रेजी बोलते पहनते मोटा
बॉलीवुड से भी रखते सम्बन्ध
ले जाते 3-पेज पार्टियों में
हम है पढ़ी-लिखी कम
ना आती अंग्रेजी में खिटपिट
ना जाने सजना-संवरना
रखे ना कभी बूटी-पालर में कदम
ना ही पहनने-ओढ़ने का ढंग
फिर भी कभी न करते व्यंग
और रहते सहज हमार संग
और ना जाने का-का खूबी
ये सब सुन सोच में डूबी
बोली, फिर क्यों होती हो परेशान?
जब हैं सब ऐशो-आराम

ये सब तो ठीक है बहना
एक सब्द मुँह से फूटते ना
अखरता बस यही इक खोट
हाय! इसी बात का रोना
ना करते हँसी-ठिठोली, रोमांटिक है कम
दिन-रात खाये है इसी बात का गम
है मल्टीनेसनल में उ
करते दिन-रात घर से काम
पर बांटते नही दुःख और चिंताएं तमाम
बस इसी बात पर बढ़ जाता आवेस
और हो जाता व्यर्थ कलेस

इतना सब सुन माथा गया ठनक
और पैरो तले ज़मीन गयी खिसक
बोली, अरे बाबरी!
ये दोष नही गुण है उनका
निकालो वहम अपने मन का
जताते नही, करते प्यार टूटकर
दुःखी न हो, रखते चिंताएं समेटकर

हे भाग्य की धनी!
समाये हो अवगुण दस गुनी
उनका है एक
ढक देते हैं एक दोष को
उनके गुण अनेक
नही मिलता सबको ऐसा वर
रखो हीरे को सहेजकर
हम पत्नियों को और न करो बदनाम
लोग करते व्यंग और बनते चुटकलें तमाम
नही होता हर व्यक्ति एक समान
बंद करो ये रोना-राटा
व पति के अवगुण का गान
क्यों करती हो मिले सकून को भंग?
उठाओ लुत्फ़, बच्चों व पति के संग
महकाओ सदा प्यार से, रिश्तों की फुलवारी
छोड़ो ये तुच्छ विचार, बनो आज की नारी!

शीतल अग्रवाल

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