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कभी तो बरसो मेघराज
विश्वजगत के हो सरताज
संपूर्ण बरस तुम हो तरसाते
श्रावण मास में दर्शन पाते
अभिलाषा से करते इंतज़ार
सावन की पहली फुहार
पड़ती महंगाई की मार
कर कृपणभांति वर्षाधार
अब तो बरसो मूसलाधार
हो जाये सबका बेड़ापार
सुनलो, विनती और पुकार
शीश झुका करें नमस्कार….
जगत मचाये हाहाकार
जब आने से करते इंकार
करे आवाहन बारम्बार
चारो ओर हो जय-जयकार
अनावृष्टि सूखा लाये
पुष्प-परिंदे सब मुरझायें
आक्रोश से थर-थर कतराएं
जब तुम करते हो प्रहार
बरसाओ अमृत अपरम्पार
भर जाये सबके भण्डार
सुनलो, इस याचक की पुकार
शीश नवा करें नमस्कार….
शीतल अग्रवाल
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