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अनकही बूँद

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अनकही बूँद

इक बूँद वो भी
जो आँखों से छलक गयी
वो पास आये,बोले-
क्यों होती हो उदास?
कुछ बात है खास?
मैं मुस्कुराकर बोली-
कुछ नहीं मन है बेचैन
न रात को न दिन में है चैन
वो बोले प्रिय, ऐसा क्या हो गया
मैंने कहा-
कुछ यादों से मन भारी हो गया
उन यादों में क्या हम भी बसते हैं
इतना कह वो मुझको तकते हैं
वह सुन लब्ज़ ठहर गए
नेत्रों से झरझर आंसू बह गए
मन चाहा कुछ बोलू
दबे कुछ राज़ खोलू
कुछ सोच आंसू ने लिया रोक
सिसक कर काँपने लगे होंठ
कुछ देर छा गया सन्नाटा
चुप्पी तोड़ अधरों ने लगाया ठहाका
छोडो, बीतीं यादों में रखा है क्या
क्षणिक भर आंसू और तनिक सी खुशियाँ
कभी तन्हा तो कभी प्रफुल्लित कर देती है यादें
बस कुछ और नहीं बातें ही बातें
इतना कह छलक गयी आँखें
फिर से दब गयी वो अनकही बातें
इक बूँद वो भी||


शीतल अग्रवाल

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