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आत्मा की प्रसन्नता

! अब लिखो बिना डरे !
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मेरा इस जगत में जन्म
मेरे माता-पिता के लिए
हर्ष का कारण बना;
किन्तु ‘मै’ तो रोता हुआ आया
क्योंकि परमपिता परमात्मा
के परम -धाम से मुझे
यहाँ भेजा गया;
परमशान्ति से अशांति के इस
लोक में आने पर आत्मा
भला कैसे प्रसन्न होती?
माता -पिता ने बड़े
प्रयत्नों से मेरी इस देह का
पालन-पोषण किया.
वे प्रसन्न थे क्योंकि
मेरी मानव देह हृष्ट-पुष्ट
हो विकसित हो रही थी;
किन्तु मेरी आत्मा तो
धीरे-धीरे सांसारिक मोह-माया
से कलुषित हो रही थी;
देह के विकास के साथ-साथ
काम; क्रोध;मोह-ममता
के जाल में मेरी आत्मा फंसती गई;
जैसे निर्मल जल मैला हो जाता है
वैसे ही पारदर्शी मेरी आत्मा
मैली होती गई;सांसारिक लोभों से
मै स्वयं को; अपने अंतर्मन को’
अपने आत्म -ज्ञान को भूल
भौतिक वस्तुओं और व्यापारों को
सब कुछ समझने लगा;
धन; मान; प्रतिष्ठा को पाकर
इठलाने; इतराने लगा;
मै हर्ष से पुलकित हुआ
पर आत्मा भला कैसे प्रसन्न होती?
आज मेरी देह निर्बल;रोगयुक्त
मृत्यु-शैया पर पड़ी है;
मै दर्द से तड़प रहा हूँ;
मेरे नैनों में पश्चाताप के आंसू हैं;
इस संसार में आकर ;क्या-क्या
कुकर्म किये? सबके दृश्य मेरे
नेत्रों में एक-एक कर घूम रहे हैं;
मै आहें भर रहा हूँ;दुखी हूँ;
किन्तु मेरी आत्मा प्रसन्न है
क्योंकि आज इस देह से निकलकर
पुनः परमपिता के
पावन-लोक में प्रस्थान करने जा रही है;
आनन्दसागर में मिलने;मैली बूँद .
रुपी आत्मा पुनः स्वच्छ होने जा रही है .;

शिखा कौशिक ‘नूतन’

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