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”औरत के ज़िस्म पर ही टिक जाती हैं निगाहें”

! अब लिखो बिना डरे !
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औरत के ज़िस्म पर ही ;
टिक जाती हैं निगाहें ,
कितना ढके वो खुद को ;
ये मर्द ही बताये !!
……………………………..
रख खुद को ढक-छिपाकर ,
क्या बावरी हुई है !
जिसने उघाड़ा खुद को ;
बदनाम वो हुई है ,
जिसकी लुटी है अस्मत;
इल्ज़ाम वो ही पाये !
कितना ढके वो खुद को ;
ये मर्द ही बताये !!
……………………………………..
है ‘नेक ‘ वही औरत ;
पर्दे में जो है रहती ,
बेपर्दगी को दुनिया ;
बेहयाई कहती ,
हर माँ से उसकी बेटी ,
ये ही सुने-सुनाये !
कितना ढके वो खुद को ;
ये मर्द ही बताये !!
………………………………..
इस जिस्म के अलावा ;
तेरा वज़ूद क्या है ?
बस इसकी कर हिफाज़त ;
मर्द की सलाह है ,
दिन-रात डरे औरत ;
नापाक न हो जाये !
कितना ढके वो खुद को ;
ये मर्द ही बताये !!
………………………….
सदियों से रखा खुद को ;
औरत ने है छिपाकर ,
मक्कार मर्द खुश है ;
कठपुतलियां बनाकर ,
ऊँगली के इशारों पर
औरत को है नचाये !
कितना ढके वो खुद को ;
ये मर्द ही बताये !!

शिखा कौशिक ‘नूतन’

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