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कविता-विषमयी जीवन राम कर रहा वहन [contest ]

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Shri Ram HD

विषमयी जीवन राम कर रहा वहन ,
पी रहा शिव की भांति कालकूट दुर्वचन !
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स्नेहमयी कैकेयी माता कैसे विषैली हो गयी ?
राम से बढ़कर प्रिय राज्य -लक्ष्मी हो गयी !!
प्रेम से कह देती माँ करता मैं वनगमन !
पी रहा शिव की भांति कालकूट दुर्वचन !
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पुत्र-प्रेम से विवश पितु मेरे व्यथित भए ,
काल की गति कुटिल मुख से वे कुछ न कहें ,
पर राम तो निभाएगा प्राण देकर भी वचन !
पी रहा शिव की भांति कालकूट दुर्वचन !
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हो गयी बेसुध मेरी जननी भी ये जानकर ,
कर रहा वन को गमन मैं वेष तापस धारकर कर ,
दृढ उर से कर रहे सिया लखन अनुसरण !
पी रहा शिव की भांति कालकूट दुर्वचन !
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रोक रहे नर व् नारी ‘राम मत जाओ ‘,
तुम ही राजा हो हमारे मान भी जाओ ,
बिन तुम्हारे तय हमारा अब तो है मरण !
पी रहा शिव की भांति कालकूट दुर्वचन !
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जन जन से मेरी प्रार्थना धीरज धरो तुम सब ,
चौदह बरस कट जायेंगें विपदा मिटेंगीं सब ,
मेरा ही रूप हैं प्रिय भरत व् शत्रुघ्न !
पी रहा शिव की भांति कालकूट दुर्वचन !
……………………………………………
बहकी प्रजा चल पड़ी श्री राम के पीछे ,
मुरझायी हुई पौध हम राम ही सींचें ,
तमसा किनारे देंगें हम आमरण अनशन !
पी रहा शिव की भांति कालकूट दुर्वचन !
………………………………………………
मध्य-रात्रि में सब करने लगे शयन ,
सिया लखन सहित किया मैंने था गमन ,
प्रणाम कर उन जन को जिनके उर में नहीं छल !
पी रहा शिव की भांति कालकूट दुर्वचन !

शिखा कौशिक ‘नूतन’

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