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२१ फरवरी को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाया जाता है .भाषा सभी महान हैं .ब्रह्म का साक्षात् रूप हैं .मानव को प्राप्त अमूल्य वरदान हैं जिसके माध्यम से हम अपने मन के भावों को दूसरों तक प्रेषित करते हैं .हम भारतीय हैं और हमारी मातृभाषा ”हिंदी” है किन्तु अनेक कारणों से ”अंग्रेजी ‘ भाषा को ”हिंदी ”की तुलना में महान साबित करने का चलन चल गया है .मेरा मानना है की दोनों की तुलना ठीक नहीं .दोनों भाषाएँ महान हैं पर चूँकि ”हिंदी” हमारी मातृभाषा है इसलिए हमे किसी भी अन्य भाषा के समक्ष इसे नीचा दिखाने की परवर्ती पर रोक लगानी चाहिए .”अंग्रेजी”माँ जैसी हो सकती है पर माँ! नहीं इसलिए इसे ”मौसी ‘की संज्ञा देते हुए यह कविता आपके समक्ष प्रस्तुत है –
”दोनों भाषा ,दोनों बहनें ,
दोनों सम आदर अधिकारी ,
माँ ! हिंदी ,मौसी अंग्रेजी ,
दोनों पर मैं जाऊं वारी ,
लेकिन कितना प्यार जता ले ;
धन-वैभव-उपहार जुटा दे;
खान-पान-सम्मान दिला दे ;
हर एशो -आराम सजा दे ;
मौसी फिर भी माँ से हारी ,
माँ! हमको मौसी से प्यारी .
माँ! भरती भावों में प्राण ,
देती रसना को आराम ,
मौसी प्रज्ञा में है रहती ,
माँ! का मन में है स्थान ,
मत करना ”माँ!” से गद्दारी ,
माँ! हमको मौसी से प्यारी .
आप बेशक अंग्रेजी में काम कीजिये ,बोलिए -पर हिंदी भाषी को नीचा दिखाने का प्रयास मत कीजिये .हो सके तो खुद भी ज्यादा से ज्यादा हिंदी बोलिए .
”जय हिंदी -जय हिन्दुस्तान ”
शिखा कौशिक ‘नूतन’
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