! अब लिखो बिना डरे !
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जीवन का बहीखाता खोला काम करें ये खास ,
कितना खोया कितना पाया आओ करें हिसाब !
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कितने आंसू आँख से टपके गिनना जरा संभलकर ,
कितनी आहेँ कितनी चीखें निकली तड़प-तड़प कर ,
कितनी बार भरी घुट-घुट कर लम्बी-गहरी सांस !
कितना खोया कितना पाया आओ करें हिसाब !
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कितना भीगे ममता मेह में कितना नेह लुटाया ,
कितना प्रेम किया अपनों से वापस कितना पाया ,
कितनी बार भरोसा टूटा कब-कब टूटी आस !
कितना खोया कितना पाया आओ करें हिसाब !
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कितनी बार खिले अधरों पर मुस्कानों के फूल ,
कितने स्वप्न सजे नयनों में सतरंगी सावन झूल ,
हुए प्रफुल्लित कितनी बारी कब-कब भये उदास !
कितना खोया कितना पाया आओ करें हिसाब !
शिखा कौशिक ‘नूतन’
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