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खून से नहला दिए , खिलखिलाते फूल !

! अब लिखो बिना डरे !
! अब लिखो बिना डरे !
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दरिंदगी की इन्तहां ,
कैसा है ये जूनून !
खून से नहला दिए ,
खिलखिलाते फूल !
………………………….
अब्बा के दिल के टुकड़े थे ,
अम्मी के दुलारे ,
स्कूल की वर्दी में ,
लगते बड़े प्यारे ,
उनके ख्वाब पूरे करने
जाते थे स्कूल !
खून से नहला दिए ,
खिलखिलाते फूल !
………………………………
पढ़ रहे थे क्लास में ;
साथियों के संग ,
आतंकियों ने घेर लिया
रह गए वे दंग,
कातिलों ने गोलियों से
ज़िस्म दिया भून !
खून से नहला दिए ,
खिलखिलाते फूल !
…………………………………….
रैपर में बंद रह गयी
कितनी ही टॉफियां ,
बिखरे पड़े स्कूल बैग
किताब-कॉपियां ,
दरिंदगी ने कर ही डाला
मासूमियत का खून !
खून से नहला दिए ,
खिलखिलाते फूल !
……………………………..
हर तरफ मासूम चीखें ,
दर्द भरी आहें ,
देखती दरिंदगी
मासूम निगाहें ,
मौत का वो नंगा नाच
कैसे जाएँ भूल !
खून से नहला दिए ,
खिलखिलाते फूल !
………………………………..
कायरों सुन लो ज़रा
खोल कर तुम कान ,
फिर खिलेंगें फूल नए
अधरों पे ले मुस्कान ,
हर अमन पसंद की
होगी दुआ क़ुबूल !
खून से नहला दिए ,
खिलखिलाते फूल !

शिखा कौशिक ‘नूतन’

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