! अब लिखो बिना डरे !
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मत मारो मत मारो मत बेटियों को मारो ,
इनको भी हक़ जीने का ये जान लो हत्यारो !
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ये नन्ही नन्ही कलियाँ चटकेंगी -महकेंगी ,
ये नन्ही नन्ही चिड़ियाँ फुदकेंगी -चहकेंगी ,
ये भी हैं अंश तुम्हारा , ये तो तनिक विचारो !
इनको भी हक़ जीने का ये जान लो हत्यारो !!
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ये किरणें हैं सूरज की चमकेंगी चमकेंगी ,
ये दामिनी बन नभ में दमकेगी दमकेगी ,
ये झाँसी की हैं रानी मत अबला इन्हें पुकारो !
इनको भी हक़ जीने का ये जान लो हत्यारो !!
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ये जननी ,माता ,पत्नी ,पुत्री व् प्यारी बहनें ,
हर रूप है महिमाशाली ,गरिमा के क्या कहने ,
तुम क़त्ल कर रहे इनका खुद को ही अब धिक्कारो !
इनको भी हक़ जीने का ये जान लो हत्यारो !
शिखा कौशिक ‘नूतन’
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