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नूतन रामायण [भाग-तीन ]

! अब लिखो बिना डरे !
! अब लिखो बिना डरे !
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५२-
शूर्पनखा तब लंका धाई
जनस्थान की दुर्दशा
रावण को बतलाई !
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५३-
रावण अधम पापी व् नीच
सिया हरण षड्यंत्र रचा
बना स्वर्ण मृग मारीच !
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५४-
स्वर्ण मृग सीता को भाया
चले राम जब पकड़ने
उसने बहुत दूर भगाया !
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५५-
सुन छली मारीच पुकार
भ्रमित भई माता सीता
लक्ष्मण को भेजा उसी ओर !
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५६-
पीछे साधू वेश बना
दुष्ट दशानन ने
माता सीता को हरा !
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५७-
सुन सिया रुदन
वृद्ध जटायु लड़े दुष्ट से
जब तक प्राण किये धारण !
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५८-
उधर नीच मारीच मार
अति चिंतित लक्ष्मण सहित
पंचवटी लौटे श्री राम !
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५९-
सीता कहीं नज़र न आई
व्यथित भये करुनानिधान
लक्ष्मण आस बंधाई !
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६०-
हुई जटायु से फिर भेंट
जान सिया की करुण दशा
लगी राम के उर पर ठेस !
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६१-
तब त्यागे जटायु प्राण
दाह संस्कार किया प्रभु ने
दिया पिता के सम सम्मान !
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६२-
प्रभु किये कबंध उद्धार
दिव्य रूप पाकर किये
उसने प्रकट शुभ उद्गार !
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६३-
राम लखन को पथ बतलाये
ऋष्यमूक ,पम्पसरोवर
मतंग ऋषि आश्रम जनवाये !
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६४-
मतंग आश्रम पहुंचे राम
शबरी ने करके सत्कार
किया दिव्य धाम प्रस्थान !
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६५-
पहुंचे प्रभु पम्पासर तट
हुए सुग्रीव भयभीत
पठाया हनुमत को झटपट !
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६६-
प्रभु का परिचय जान
नतमस्तक श्री राम चरण में
हुए भक्त हनुमान !
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६७-
श्री राम -सुग्रीव मित्रता
बालि-वध का लिया प्रण
मिटे दुष्ट की धृष्टता !
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६८
बालि वध कर दिया दंड
रहो सयंमित , मत भोग करो
कन्या सम चारी संग !
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६९-
सुग्रीव पाए किष्किन्धा राज
बालि-तारा पुत्र
अंगद बने युवराज !
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७०-
प्रस्रवण गिरि पर चातुर्मास
सिया विरह में सभी ऋतू
देती राम ह्रदय को त्रास !
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७१
शरद ऋतू का आगमन
विस्मृत वचन किये सुग्रीव
किष्किन्धा पहुंचे लक्ष्मण !
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७२-
सुग्रीव पधारे राम समीप
सैन्य संग्रह उद्योग बताया
जगे आस के बुझे दीप !
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७३-
चहुँ दिशी गए वानर वीर
दक्षिण में सोने की लंका
पहुंचे लाँघ अर्णव महावीर !
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७४-
मात सिया का पता लगाया
राम मुद्रिका भेंट कर
श्री राम सन्देश सुनाया !
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७५ –
अशोक वाटिका दी उजाड़
हनुमत मारे अक्षय कुमार
मेघनाद रहा चिंघाड़ !
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76 –
मेघनाद ब्रह्मास्त्र चलाया
स्वयं बंधे संकटमोचन
दिव्यास्त्र का मान बढाया !
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७७-
दम्भी रावण को समझाया
प्रभु राम की महिमा पर
राक्षसराज समझ न पाया !
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७८-
हनुमत वध आदेश सुनाया
हस्तक्षेप कर विभीषण ने
इसको अनुचित था बतलाया !
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[जारी है ]
शिखा कौशिक ‘नूतन’

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