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”भई तुम तो हद करती हो !”

! अब लिखो बिना डरे !
! अब लिखो बिना डरे !
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शौहर से बहस करती हो भई तुम तो हद करती हो !
शौहर से न डरती हो भई तुम तो हद करती हो !
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मैं आँखें दिखाता हूँ फिर हाथ उठाता हूँ ,
दबाने से न दबती हो भई तुम तो हद करती हो !
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मैं इल्ज़ाम लगाता हूँ फिर करता हूँ ज़लील ,
तुम मुझ पे ही हंसती हो भई तुम तो हद करती हो !
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मैंने तो काट डाले ख्वाबों के तेरे पंख ,
बिना पंख ही उड़ती हो भई तुम तो हद करती हो !
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‘नूतन’जो क़त्ल करने को तलवार उठाई ,
तुम धार पर चलती हो भई तुम तो हद करती हो !

शिखा कौशिक ‘नूतन’

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