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”मर्दों ने कब्ज़ा ली कोख ”

! अब लिखो बिना डरे !
! अब लिखो बिना डरे !
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आँखें नम
लब खामोश
घुटती सांसें
दिल में क्षोभ
उठा रही
सदियों से औरत
मर्दों की दुनिया
के बोझ !
………………………………..
गाली ,घूसे ,
लात , तमाचे
सहती औरत
युग-युग से
फंदों पर कहीं
लटकी मिलती ,
दी जाती कहीं
आग में झोंक !
…………………………
वहशी बनकर
मर्द लूटता
अस्मत
इस बेचारी की ,
दुनिया केवल
है मर्दों की
कहकर
कब्ज़ा ली
है कोख !

शिखा कौशिक ‘नूतन’

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