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मैनेज-लघु कथा

! अब लिखो बिना डरे !
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सुजीत ने रिंगटोन बजते ही जेब से मोबाइल निकाला और बटन दबाकर कॉल रिसीव करता हुआ बोला – ” माँ …प्रणाम …ठीक तो हो ?…पिता जी कैसे हैं ?” माँ घबराई हुई सी आवाज़ में बोली -” बेटा मैं तो ठीक हूँ पर तेरे पिता जी की तबियत काफी ख़राब है .तुम यहाँ आ जाते तो सहारा हो जाता . वैसे तो इलाज चल ही रहा है .” सुजीत बहाना बनाता हुआ बोला -” माँ तुम जानती हो ना मेरी जॉब के बारे में …साँस लेने तक की फुर्सत नहीं है और तुम्हारी बहू नेहा भी नौकरी के चक्कर में बहुत व्यस्त रहती है . बिल्कुल टाइम नहीं मिलता उसको .आप प्लीज़ खुद ही मैनेज कर लो माँ ….और हां आपका पोता चिंटू क्लास में फर्स्ट पोजिशन लाया है …पिता जी को बताना वो बहुत खुश होंगे .” माँ थोड़े मायूस स्वर में बोली -” नहीं आ सकते तो कोई बात नहीं …मैं मैनेज कर लूंगी वैसे भी पिछले आठ साल से ….शादी के बाद से तुम ज्यादा ही व्यस्त हो गए हो .” इस वार्तालाप के एक माह बाद सुजीत के मोबाइल पर फिर से माँ की कॉल आयी .सुजीत अनमने भाव से रिसीव करता हुआ बोला -” प्रणाम माँ ….क्या बताऊँ यहाँ मैं बहुत परेशान हूँ ….पंद्रह दिन से चिंटू बीमार है .अच्छे से अच्छा इलाज करवा रहा हूँ पर तबियत अभी तक भी पूरी तरह ठीक होने में नहीं आयी है .” माँ चिंतित स्वर में बोली -” बेटा चिंता मत करो …अब तुम्हारे पिता जी की तबियत काफी ठीक है ..तुमने तो पलटकर फोन करके पूछा भी नहीं …चलो कोई बात नहीं …तुम दोनों पर टाइम ही नहीं तो चिंटू की देखभाल क्या करोगे …मैं और तुम्हारे पिता जी आ जाते हैं कुछ दिन के लिए वहाँ …” माँ की ये बात सुनकर सुजीत हड़बड़ाता हुआ बोला -” माँ आप रहने दो क्यों चक्कर में पड़ती हो …मैं और नेहा मैनेज कर लेंगें .” ये कहकर सुजीत ने फोन काट दिया .

शिखा कौशिक ‘नूतन’

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