! अब लिखो बिना डरे !
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धर्म अगर बिकने आया है
तो हम धर्म खरीदेंगे,
शर्म बेचने वालों की हम
सारी शर्म खरीदेंगे।
ख़ुशी ख़ुशी गर ख़ुशी बिक रही
तो हम ख़ुशी खरीदेंगे,
दर्द बेचने वालों का हम
सारा दर्द खरीदेंगे।
ज्ञान बेचते गुरु मिलें गर
बेशक ज्ञान खरीदेंगे,
गद्दारों से गद्दारी का
सारा हुनर खरीदेंगे।
न्यायाधीश गर न्याय बेचते
तो हम न्याय खरीदेंगे,
झूठ बोलने वालों का हम
सारा झूठ खरीदेंगे।
देशभक्त की भक्ति का हम
सारा श्रेय खरीदेंगे,
कलम बेचने वालों की हम
सारी स्याही खरीदेंगे।
मधुशाला की मय का हम तो
सारा नशा खरीदेंगे,
धरती से लेकर अम्बर तक
सारा जहां खरीदेंगे,
हम सत्ता के चतुर खिलाड़ी
प्यादा हरेक खरीदेंगे,
विक्रेता से तय कीमत पर
अब ईमान खरीदेंगे।
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