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सियासत को अगर समझो जुबानें बंद रहने दो !

! अब लिखो बिना डरे !
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सियासत को अगर समझो जुबानें बंद रहने दो !

खिलाफत मत करो समझो जुबानें बंद रहने दो !

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बड़ी मक्कारियाँ कर के हवा अपनी बनाई है ,

बनो नादान मत यारों जुबानें बंद रहने दो !

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मिला जो तख़्त तुमको भी नवाजेंगे ईनामों से ,

हमारी चाल चलने दो जुबानें बंद रहने दो

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खफा होना है हो जाओ झुकेंगे हम नहीं हरगिज़ ,

इशारों को समझ जाओ जुबानें बंद रहने दो !

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हमेशा काटते शागिर्द ही उस्ताद की गर्दन ,

ये ‘नूतन’ सबको बतलाओ जुबानें बंद रहनें दो !

शिखा कौशिक ‘नूतन’

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