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आखिरकार तीस वर्षीय डॉ पिया का तलाक हो ही गया था. यूँ मैं उसके पति सिद्धांत से कभी नहीं मिली थी पर केवल उसको इस तलाक के लिए जिम्मेदार ठहराना एकतरफ़ा निर्णय ही कहा जाएगा , क्योंकि जितना मैं पिया को जान पाई वो दिल की बुरी नहीं थी पर उसके उच्छृंखल स्वभाव के कारण उसे बर्दाश्त करना बहुत मुश्किल हो जाता था , फिर एक पति कहां तक एडजसट कर सकता है. . मेरा परिचय उससे छह माह पुराना ही तो था, जब मैंने इस सेल्फ फाइनेंस कॉलेज को पंद्रह अगस्त को ज्वाइन किया था. पिया की खास बात ये थी कि वो किसी से भी दोस्ती की शुरुआत स्वयं ही कर देती. मेरे साथ भी ऐसे ही उसकी दोस्ती हो गयी और वो थी भी तो मेरे ही हिंदी डिपार्टमेंट की. कुछ ही दिनों में ऐसा लगने लगा जैसे मैं उसे कब से जानती हूँ! हालांकि उसके विचारों से मैं बहुत भिन्न विचारों वाली थी. एक दिन वो एक क्लर्क की ओर इशारा करके बोली – “इसके पास और कपड़े नहीं हैं क्या.. रोज यही पहन कर आ जाता है.” उसकी ये बात सुनकर मुझे गुस्सा आना स्व्भविक था. मैंने उसकी घटिया सोच को लताड़ते हुए कहा – “बेकार की बातें मत किया करो.” पर वो कहां सुधरने वाली थी. अपने जीवन की एक एक बात वो स्टाफ रूम में सबके साथ शेयर करने को उत्सुक रहती. किसी ने पूछा उससे – ‘कहां रहती हो?… तपाक से बोली – अपने पापा के घर पर.’ पूछने वाले ने फिर पूछा – ‘पर तुम तो शादीशुदा हो!’ इसपर वो नि: संकोच होकर बोली – ‘वो मेरा मेरे हसबैंड से तलाक का केस चल रहा है… इसलिए दो साल से मैं अपनी दो वर्षीय बिटिया पीहू के साथ पापा के पास ही रह रही हूँ.’
मैं उसे कभी कभी कड़क होकर समझाती – ‘इस तरह निजी जीवन से जुड़ी बातें सबके सामने जाहिर नहीं करते…. जानती हो तुम्हारी व्यथा – कथा सुनकर कुछ लोग सहानुभूति की आड़ में तुमसे फायदा उठाने का प्रयास करेंगे. समझती हो ना कैसे फायदे उठाने से मतलब है मेरा?’ मेरी इस बात पर गोरे मुखडे़ पर टकी दो सुंदर आंखों को आश्चर्य से फैलाकर कहती – अरे…. दिशा एकदम सच कहा तुमने…. मेरा ऐसा फायदा उठाने की कोशिश कई पुरुष सहकर्मी कर चुके हैं… तुम तो जानती ही हो मेरा नेचर.. मैं सबसे खुलकर मिलती हूं… मैं निश्छल प्रेम चाहती हूँ पर…. पिछले कॉलेज में कितने ही मेल स्टाफ मेम्बर्स ने मेरा मोबाइल नंबर ले लिया और रात बेरात मुझे परेशान करने लगे.. आखिरकार मुझे अपना वो मोबाइल नंबर बंद ही करना पड़ा… पर जानती हो मैं कई बार कठिन परिस्थिति में फंसकर भी बच गयी क्योंकि मेरी रक्षा हनुमान जी करते हैं! ‘अब विस्मित होने की बारी मेरी थी. मन में आया -‘ आखिर सब कुछ भुगतने के बाद भी ये लड़की क्यूं नहीं सुधरती!!! ‘
स्टाफ मेल मेम्बर्स के साथ उसका वार्तालाप कभी -कभी शालीनता की सीमा को पार करने लगता . शरारती मेल स्टाफ मेम्बर्स उसकी बिंदास नेचर का खुलकर मजा लेते. एक दिन वैलेंटाइन डे पर बहस के दौरान तो उसने बिंदासपने की हद ही कर दी जब वो इस बात की चर्चा करने लगी कि वो इस बार वैलेंटाइन किसके साथ मनायेगी ? ‘उसके इस बिंदासपने से मैं सख्त घृणा करती थी. ये बातें मुझे मजबूर करती कि मैं पिया से बात करना बंद कर दूं पर जब वो किसी भी दिन कॉलेज में आते ही स्टाफ रूम की मेज पर सिर रखकर बैठ जाती रोने और बिना मेरे पूछे ही मुझे बताने लगती कि आज घर पर उसकी छोटी बहनों और मां ने उसे और उसकी पीहू को खूब कोसा. ‘ तब ये सब सुनकर मुझे उस पर तरस आ जाता. वो कहती -‘ मुझ पर दूसरी शादी का दबाव बनाया जा रहा है… मैं दूसरी शादी कभी नहीं करूंगी… तलाक के एवज में मेरे अकाउंट में दस लाख रूपये आ जायेंगे… मैं नौकरी भी करती रहूंगी… बेटी को किसी चीज की कमी नहीं होने दूंगी… देखना बड़ी होकर मेरी बेटी मुझ पर गर्व करेगी. ‘ ये सब वो कहती जाती और मेरी बुद्धि इस गणना में लग जाती क्या इतनी स्वछन्द मां बेटी को सही संस्कार दे पायेगी. स्टाफ के और मैंबर भी जब उसके बारे में बात करते तब यही निष्कर्ष निकलता कि ‘ वो अपने साथ -साथ बेटी का भविष्य भी बर्बाद कर रही है. इसके माता पिता भी कितने परेशान होंगें इससे! ‘ मेरे मन में आता सिद्धांत कैसा पिता है जिसने स्वयं तो पिया से छुटकारा पा लिया पर बेटी के के लिए अपने कर्तव्य के विषय में जरा भी नहीं सोचा!’
पिया की स्वछंदता बढती ही गयी. वो बेधड़क प्रिंसिपल ऑफिस में जाकर अविवाहित प्रिंसीपल सर से उनके विवाह को लेकर चर्चा करने लगती . प्रिंसीपल सर द्वारा अधिक तवज्जो किसी और महिला सहकर्मी को दिये जाने पर उस सहकर्मी के चरित्र तक पर ऊंगली उठा देती.
हद तो तब हो गयी जब बी.ए. के उन हिंदी छात्र – छात्राओं ने आकर मुझसे पिया की शिकायत की ; जिनकी क्लास वो ले रही थी. बच्चों का कहना था कि मैडम पढ़ाती नहीं हैं. हमारा बहुत सारा सिलेबस पड़ा हुआ है और मैडम या तो फोन पर लगी रहती हैं या फिर इधर उधर की बातों में… ‘ मैं ये सब सुनकर चकित रह गयी क्योंकि मैं समझती थी कि पिया कैसी भी नेचर की हो पर पढ़ाती अच्छा ही होगी.. हिंदी में पी. एच-डी जो है वो.’ पर बच्चों की इन बातों ने मुझे एक नयी सच्चाई से रूबरू करा दिया. मैंने बच्चों को समझा बुझाकर वापस भेज दिया कि अब आगे ऐसा नहीं होगा. मैंने पिया से जब इस संबंध में बात की तो वो थोडे़ पश्चाताप के लहजे में बोली – ‘क्या बताऊं दिशा…. अपनी परेशानियों के कारण मैं पढ़ा ही नहीं पा रही. तुम तो जानती हो मेरे ससुराल वाले बहुत कमीने हैं… केवल मेरी सासू मां अच्छी थी पर उनकी चलती ही नहीं थी.. और वो मेरा ससुरा.. वो तो बहुत बेकार आदमी है… उसके ही कारण आज मेरा व सिद्धांत का रिश्ता टूटने की कगार पर है… पता है जब पीहू होने वाली थी तब मेरे ससुरालिये डिलीवरी के लिए मुझे हॉस्पिटल ही नहीं ले जा रहे थे.. कह रहे थे बहू जरा तो कॉपरेट कर… नौरमल डिलीवरी से ही हो जायेगा बच्चा .. मेरा दम निकला जा रहा था… वो तो मेरे पापा पहुंच गये वहॉ और मुझे हॉस्पिटल में भर्ती करवाया.. वहॉ बहुत बड़े ऑपरेशन से पैदा हुई पीहू… तब पापा मुझे अपने साथ ले आये… पर अब पापा को छोड़कर परिवार में मैं और मेरी बेटी सब पर बोझ बन गये हैं.. मैं चाहती हूं कि पीहू को लेकर कहीं और जाकर रहूं पर पापा नहीं मानते… मेरी एक बहन तो मुझ पर बहुत गंदे गंदे आरोप लगाती है.. ‘ ये सब कहकर वो रोने लगी. मैं चुपचाप सब सुनती रही और स्त्री जीवन की विपदाओं पर मंथन करती रही फिर उसे समझाते हुये बोली -‘ तुम से मैं सहानुभूति रख सकती हूं पर ये सब हमारी निजी समस्याएं हैं. कालेज में प्रवक्ता पद की अनेक जिममेदारियां है जिनसे तुम यूं रोकर छुटकारा नहीं पा सकती हो. हम सबसे पहले अपने छात्र वर्ग के प्रति जवाबदेह हैं फिर उनके प्रति जो हमें सैलरी देते हैं… सोचो हम यहां क्यूं हैं? बच्चों को पढ़ाने के लिए ही ना… इसलिए अपनी नन्ही सी बेटी का हित विचार कर अपने में परिवर्तन लाओ. यदि तुम्हे आवश्यकता है तो मैं अपने बनाये नोटस कल लाकर दे दूंगी.. तुम उनसे पढ़ा देना. ‘ पिया ने सहमति में सिर हिला दिया. ऐसा नहीं था कि वो सही दिशा में आगे नहीं बढ़ना चाहती थी.. पर न जानें उसके दिल व दिमाग में कैसी भटकन थी! किसी भी मुद्दे पर समझाने पर आश्वस्त करती -‘ अब मैं ऐसा नहीं करूंगी… अब मैं अपने में सुधार ले आऊंगी… ‘ पर फिर से पुराने ढर्रे पर ही लौट आती. बहरराल पिया में सुधार नहीं आया. छात्र वर्ग प्रिंसीपल सर के पास पहुंच गया. प्रिंसिपल सर ने पिया से जवाब तलब किया जिसका पिया ने बहुत ढी़ठता से सामना किया. मामला मैंनेजमेंट के समक्ष रखा गया और पिया को कॉलेज से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. मेरे कानों में आज भी पिया के कहे कुछ शब्द कभी कभी गूंज उठते हैं – ‘मैं हर साल कॉलेज बदल देती हूँ पर एक बात है मैं जहॉ से चली जाती हूं वहॉ पर भी लोग मुझे भूल नहीं पाते.’…. शायद वो ठीक ही कहती थी.
डॉ शिखा कौशिक नूतन
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