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‘किन्तु मित्र का मौन खल जाता है ‘

! अब लिखो बिना डरे !
! अब लिखो बिना डरे !
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कड़वा , खट्टा ,मिर्चीला
हर बोल चल जाता है ,
विकट क्षणों में किन्तु मित्र का
मौन खल जाता है !
………………………………..
करे समर्थन मित्र हमारा
उससे रहे अपेक्षा ,
साथ हमारे डटा रहे वो
सबकी करे उपेक्षा ,
कभी-कभी विश्वासी को
विश्वास छल जाता है .
विकट क्षणों में किन्तु मित्र का
मौन खल जाता है !
……………………………………………
सरस-सरस बातें कर लेना
नहीं मित्रता होती ,
राम की भांति बालि-वध कर
जग की निंदा सहती ,
मित्र-भाव में देख मिलावट
तन-मन जल जाता है .
विकट क्षणों में किन्तु मित्र का
मौन खल जाता है !
…………………………………….
मिले समर्पित मित्र कोई
ये हर मन की अभिलाषा ,
लेकिन पहले स्वयं बांच लें
मीता की परिभाषा ,
मित्रों के बलिदानों से
संकट भी टल जाता है .
विकट क्षणों में किन्तु मित्र का
मौन खल जाता है .

शिखा कौशिक ‘नूतन’

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