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जेल अपवित्र न हो जाये भोंपू जी ?-राजनैतिक लघु कथा

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जेल अपवित्र न हो जाये भोंपू जी ?-राजनैतिक लघु कथा

दुष्कर्म  के  आरोपी  निराशा रावण  भोंपू  को  बड़े  प्रयासों  के  पश्चात्  जब  पुलिस  पकड़कर  जेल  ले  जा  रही  थी  तब  अत्यधिक कातर वाणी में वे बोले -” जेल भेज तो अपवित्र हो जाऊंगा .” उन्हें पकड़कर ले जाती  महिला पुलिसकर्मी ने व्यंग्य में मुस्कुराते हुए कहा -” भोंपू जी सर्वप्रथम तो आप जैसे कुपुत्र को जन्म देकर आपकी जननी की कोख अपवित्र हुई ,आपने जिस दिन इस वसुधा पर अपने चरण रखे तब यह वसुधा अपवित्र हुई .आपने जिस दिन प्रवचन देना आरम्भ किया सारी दिशाओं  की वायु अपवित्र हो गयी और सब छोडिये आपने अपने दुराचरण से श्रद्धा -आस्था-भक्ति जैसी निर्मल भावनाओं को अपवित्र कर डाला .और आप जेल जाने से अपवित्र हो जायेंगें ? हा हा …दुष्ट तुझ जैसे पापियों को तारने के लिए जेल ही गंगा माता का रूप धरती है .जैसे गंगा माता के पवित्र जल में डुबकी लगाकर सारे पाप धुल जाते हैं वैसे ही शायद आपके पाप जेल में रहकर ही धुल पायेंगें पर मुझे तो ये चिंता सता रही है कि आपके गुनाहों से जेल की चारदीवारी ही न हिल जाये .”  ये कहकर महिला पुलिसकर्मी ने एक घृणा भरी दृष्टि सफ़ेद कपड़ों में लिपटे उस दुष्कर्मी भोंपू पर डाली और खींचते हुए उसे पुलिस वैन की ओर चल पड़ी .

शिखा कौशिक ‘नूतन’

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