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सच को बेपर्दा होने दो !

! अब लिखो बिना डरे !
! अब लिखो बिना डरे !
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अब डरो नहीं अंजाम से तुम
जो होना है वो होने दो ,
हो जाये क़त्ल भले ही हम
सच को बेपर्दा होने दो !
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सच नहीं किसी की बेग़म है
जो रहे सात पर्दों में छिप ,
है नहीं किसी की लौंडी ये
जो हुक्म बजाये रहकर चुप ,
खामोश न रह अब खोल ले लब
सच्चाई इनको कहने दे !
हो जाये क़त्ल भले ही हम
सच को बेपर्दा होने दो !
…………………………….
घुट घुट कर अब सांसे न लो
खुलकर हुंकार भरो प्यारो ,
सिर कलम आज हो जाने दो
पर झुको नहीं हरगिज़ यारो ,
ज़ुल्म मिटाने को दिल में
आक्रोश का तांडव होने दो !
हो जाये क़त्ल भले ही हम
सच को बेपर्दा होने दो !
…………………………….
ऊँचा रुतबा ,श्रद्धा-भक्ति ,
लालच व् भय की बंदूके ,
सच के सीने पर तनी हुई
धमकाती मद की मय पी के ,
मर मिटने को तैयार रहो
शर्मिंदा झूठ को होने दो ,
हो जाये क़त्ल भले ही हम
सच को बेपर्दा होने दो !

शिखा कौशिक ‘नूतन’

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