! अब लिखो बिना डरे !
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किसी की आँख का आंसू
मेरी आँखों में आ छलके;
किसी की साँस थमते देख
मेरा दिल चले थमके;
किसी के जख्म की टीसों पे
मेरी रूह तड़प जाये;
किसी के पैर के छालों से
मेरी आह निकल जाये;
प्रभु ऐसे ही भावों से मेरे इस दिल को तुम भर दो,
मैं कतरा हूँ मुझे इंसानियत क़ा दरिया तुम कर दो.
किसी क़ा खून बहता देख
मेरा खून जम जाये;
किसी की चीख पर मेरे
कदम उस ओर बढ़ जाएँ;
किसी को देख कर भूखा
निवाला न निगल पाऊँ ;
किसी मजबूर के हाथों की
मैं लाठी ही बन जाऊं;
प्रभु ऐसे ही भावों से मेरे इस दिल को तुम भर दो,
मैं कतरा हूँ मुझे इंसानियत क़ा दरिया तुम कर दो.
शिखा कौशिक ‘नूतन’
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