- 580 Posts
- 1343 Comments
बाबू रामधन ने हाथ देकर ऑटो रुकवाया . वे शहर आये थे अस्पताल में भर्ती अपने मित्र सुरेश का हालचाल जानने .सुरेश को पिछले हफ्ते ही दिल का दौरा पड़ा था .ऑटो में पहले से ही एक लड़की बैठी हुई थी . बाबू रामधन ने ऑटो वाले से पूछा ” बेटा सिटी हॉस्पिटल चलेगा ?” ऑटो वाला बोला -” हां ताऊ …वही जा रहा हूँ …बैठ लो तावली !” बाबू रामधन सकुचाते हुए उस लड़की के बराबर में बैठ लिए और मन में सोचने लगे -” कितनी बेशर्मी आ गयी है …मर्दों के कपडे पहन कर फिरती हैं लड़कियां ..के कहवें हैं जींस ..टी शर्ट ..पहले तो जनानियां धोती पहने थी तो उस पर भी घर से निकलते समय चद्दर ओढ़ लेवें थी ..इब देक्खो !!!” बाबू रामधन के ये सोचते सोचते उस लड़की का मोबाइल बज उठा .उसने कॉल रिसीव करते हुए कहा -सर मैं बस पहुँच ही रही हूँ ..डोंट वरी !” बाबू रामधन का दिमाग और गरम हो गया .वे सोचने लगे -” इस मोबाइल ने तो सारा गुड गोबर ही कर डाला ..जनानियों को क्या जरूरत है इसकी …बस यार दोस्तों से गप्पे लड़ाने का साधन मिल गया !” तभी ऑटो रुका क्योंकि अस्पताल आ गया था .बाबू रामधन वही उतर लिए और वो लड़की भी .बाबू रामधन के देखते देखते वो लड़की तेजी से अस्पताल के अंदर चली गयी . बाबू रामधन मुंह बिचकाते हुए पूछपाछ कर सुरेश के पास उसके वार्ड में पहुँच गए .वहां सुरेश की सेवा करती हुई नर्स को देखकर वे अपनी सोच पर शर्मिंदा हो उठे .ये नर्स वही लड़की थी जो उनके साथ ऑटो में बैठकर आई थी .उन्होंने मन में सोचा -” वक्त के साथ म्हारी सोच भी पलटनी चाहिए .वाकई बेशर्म ये मरदाना लिबास में लडकिया नहीं बल्कि हमारी सोच है जो लड़की देखते ही बस उसके लिबास पर आँखें गड़ाने लगते हैं केवल इसलिए क्योंकि वो एक लड़की है !!!
शिखा कौशिक ‘नूतन’
Read Comments