! अब लिखो बिना डरे !
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खुले हाक़िम की मक्कारी
गिरें साज़िश की दीवारें ,
हमारे मुल्क की किस्मत
हमारे हाथ में होंगी !
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हमारे साथ गद्दारी
नहीं अब और कर सकते ,
हिला देंगें तेरी सत्ता
के इज़्ज़त खाक में होगी !
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हमें मजबूर कहकर
आग सीने में लगाते हो ,
इसी से राख अब लंका
तुम्हारे दर्प की होगी !
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तुम्हारे खौफ से हरगिज़
नहीं अब लब रहेंगें चुप ,
खुलेगा हर गुनाह तेरा
तुझे शर्मिंदगी होगी !
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हमें तू क़त्ल कर ,काट दे ,
फांसी पर चढ़ा दे तू ,
खिलाफत की हमारी धार
हाकिम कुंद न होगी !
शिखा कौशिक ‘नूतन’
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