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‘जय पताका ले चढ़ा ‘

! अब लिखो बिना डरे !
! अब लिखो बिना डरे !
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त्याग कर सारी निराशा
दृढ़ मनोबल से बढ़ा,
तब पराजय के शिखर पर
जय पताका ले चढ़ा !
………………
थी कमी प्रयास में
आधे – अधूरे थे सभी,
एक लक्ष्य के प्रति
आस्था न थी कभी,
अपनी ही कमजोरियों से
सख्त होकर मैं लड़ा !
तब पराजय के शिखर पर
जय पताका ले चढ़ा !
……………
असफल होकर बहाये
जो भी अश्रु आज तक,
थी मेरी ही मूर्खता
आरंभ से ले अंत तक,
असफलता से सबक ले
पाठ जय का जब पढ़ा !
तब पराजय के शिखर पर
जय पताका ले चढ़ा !
……………………..
है असंभव कुछ नहीं
सही दिशा में यत्न हो,
हो अगर निश्चय हमारा
कंकणें भी रत्न हो ,
आग की लपटों में तपकर
जो बना पक्का घड़ा !
तब पराजय के शिखर पर
जय पताका ले चढ़ा !!

शिखा कौशिक नूतन

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