! अब लिखो बिना डरे !
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ग़म का समंदर पी जाने को दिल मेरा तैयार है !
मर -मर कर यूँ जी जाने को दिल मेरा तैयार !
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दर्द नहीं अब दिल में होता किस्मत की मक्कारी पर ,
ठोकर खाकर उठ जाने को दिल मेरा तैयार है !
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जितना शातिर बन सकता है बन जाने दो दुश्मन को ,
रोज़ नए धोखे खाने को दिल मेरा तैयार है !
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लुटते अरमानों की लाशें हमनें देखी चुप रहकर ,
सदमें सारे सह जाने को दिल मेरा तैयार है !
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आँसू -आहें नहीं निकलती ‘नूतन’ ग़म से टकराने पर ,
अब फौलादी बन जाने को दिल मेरा तैयार है !
शिखा कौशिक ‘नूतन’
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