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दीप जलाना सीखा है!

! अब लिखो बिना डरे !
! अब लिखो बिना डरे !
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जब जब कंटक चुभे हैं पग में,
मैंने चलना सीखा है,
अंधियारों से लड़कर मैंने,
दीप जलाना सीखा है!
……………………..
अपनों की गद्दारी देखी,
गैरों की हमदर्दी भी,
पत्थर की नरमाई देखी,
फूलों की बेदर्दी भी,
सूखे रेगिस्तानों से
प्यास बुझाना सीखा है!
अंधियारों से लड़कर मैंने,
दीप जलाना सीखा है!
…………………….
समय के संग बदला है मैंने,
अपने कई विचारों को,
फिर से परखा है मैंने
पतझड़ और बहारों को,
अश्रु खूब बहाकर मैंने
अब मुस्काना सीखा है!
अंधियारों से लड़कर मैंने,
दीप जलाना सीखा है!
……………….
पाकर खोना खोकर पाना
जीवन की ये रीति है,
नहीं कष्ट दें किसी ह्रदय को
सर्वोत्तम ये नीति है,
अच्छाई के आगे मैंने
शीश झुकाना सीखा है!
अंधियारों से लड़कर मैंने,
दीप जलाना सीखा है!

शिखा कौशिक नूतन

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