! अब लिखो बिना डरे !
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ज़हरीली सोच कितना परेशान कर रही है !
बेग़म तो घर के भीतर आराम कर रही है !
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जो सबसे पहले जागती सोती है सबके बाद ,
दिन-रात ख़िदमतों में तमाम कर रही है !
बेग़म तो घर के भीतर आराम कर रही है !
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बच्चें हो या हो शौहर सबको ज़रूरी काम ,
वो गैर-ज़रूरी बन बेगार कर रही है !
बेग़म तो घर के भीतर आराम कर रही है !
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बर्तनों को मांजना कालिख उतारना ,
मल मल के राख खुद को बीमार कर रही है !
बेग़म तो घर के भीतर आराम कर रही है !
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क्या क्या किया शौहर ने सब कुछ गिना रहा ,
‘नूतन’ खड़ी चुप बेग़म इक़रार कर रही है !
बेग़म तो घर के भीतर आराम कर रही है !
शिखा कौशिक ‘नूतन’
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