! अब लिखो बिना डरे !
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सदियों से है बढ़ता ही गया मर्द का गुरूर !
सीढ़ियां चढ़ता ही गया मर्द का गुरूर !!
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जो कुछ गलत दुनिया में हुआ उसका सब कुसूर ,
औरत के सिर मढ़ता ही गया मर्द का गुरूर !
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औरत को रखा बंद एक जानवर बना ,
पट्टा गले कसता ही गया मर्द का गुरूर !
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न देख कुछ न बोल बस हाँ में हाँ मिला ,
औरत को यूँ डसता ही गया मर्द का गुरूर !
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आग में जला या फांसी पर चढ़ा ,
‘नूतन’ को है छलता ही गया मर्द का गुरूर !
शिखा कौशिक ‘नूतन’
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