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‘मुझे ऐसे न खामोश करें ‘

! अब लिखो बिना डरे !
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‘मुझे ऐसे न खामोश करें ‘

आ ज मुंह खोलूंगी मुझे ऐसे न खामोश करें ,

मैं भी इन्सान हूँ मुझे ऐसे न खामोश करें !



तेरे हर जुल्म को रखा है छिपाकर दिल में ,

फट न जाये ये दिल कुछ तो आप होश करें !



मुझे बहलायें नहीं गजरे और कजरे से ,

रूमानी बातों से न यूँ मुझे मदहोश करें !



मेरी हर इल्तिजा आपको फ़िज़ूल लगी ,

है गुज़ारिश कि आज इनकी तरफ गोश करें !



मेरे वज़ूद  पर ऊँगली न उठाओ ‘नूतन’ ,

खून का कतरा -कतरा यूँ न मेरा नोश करें  !



शिखा कौशिक ‘नूतन’

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