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“मेरा बिस्तर बंधा हुआ है “

! अब लिखो बिना डरे !
! अब लिखो बिना डरे !
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भावुकता
कुछ अंश विवशता
वापस लौटा लाई है,
पुनरागमन देख ये मेरा
चिंता तुम्हे सताई है ,
लेकिन तुम आश्वस्त रहो
कोई गोरखधंधा नहीं हुआ है ,
मेरा बिस्तर बँधा हुआ है !
………………………………..
कुछ क्षण रूककर
देख-परखकर
छूटे काम करूंगी पूरे ,
मेरे विचलित उर के कारण
जो रह गए थे सभी अधूरे ,
लेकिन तुम आश्वस्त रहो
कोई गोरखधंधा नहीं हुआ है ,
मेरा बिस्तर बँधा हुआ है !
………………………………..
स्थिर नहीं है पुनरागमन
निश्चित है मेरा जाना ,
उर में घाव लगे हैं गहरे
कठिन बहुत उनका भर पाना ,
लेकिन तुम आश्वस्त रहो
कोई गोरखधंधा नहीं हुआ है ,
मेरा बिस्तर बँधा हुआ है !
………………………………..
रूकती नहीं गति इस जग की
कोई आये ; कोई जाये ,
नित नूतन सृष्टि है सजती
फिर क्यों पुष्प कोई इठलाये
लेकिन तुम आश्वस्त रहो
कोई गोरखधंधा नहीं हुआ है ,
मेरा बिस्तर बँधा हुआ है !

शिखा कौशिक ‘नूतन ‘

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