! अब लिखो बिना डरे !
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वो दर्द का एक लम्हा तूफान जैसा है,
मेरे लिए तो मौत के सामान जैसा है !
भूलने की कोशिशें नाकाम ही रही,
गहरे लगे एक ज़ख्म के निशान जैसा है!
लूट लिया जिसने चैन-ओ-सुकून सारा,
नजरों में हाय सबके भगवान जैसा है !
ये ठीक है मुकद्दर सबका नहीं बुलंद ,
कई बार टूटते हुए अरमान जैसा है !
जो नोंच खाये ‘नूतन’ मिलकर करे दगा ,
इंसान के इस जिस्म में शैतान जैसा है !
शिखा कौशिक नूतन
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