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रौब के तोते -लघु कथा

! अब लिखो बिना डरे !
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पुलिस स्टेशन में लैंडलाइन फोन बजा .थानाध्यक्ष ने रिसीवर उठाया .फोन पर आवाज़  साफ़ नहीं आ रही थी .उधर से कोई महिला बोल रही थी .थानाध्यक्ष जी समझने की कोशिश करते हुए प्रश्नों की बौछार करने में जुट गए -”…….क्या …कौन भाग गयी …किस इलाके से बोल रही हो …भाई हमारा थाना वहां नहीं लगता …अपने बच्चों को सँभालते नहीं….यहाँ फोन कर देते हो ……किसे किसे ढूंढें ….पहले ही गोली क्यों नहीं मार देते ….?” ये कहकर थानाध्यक्ष जी ने फोन झटककर रख दिया .तभी उनका निजी  मोबाइल बज उठा .कॉल  घर से थी .वे कुछ बोलते उससे पहले ही उनकी श्रीमती जी का उन्हें लताड़ना शुरू हो गया – ”मोबाइल मिलाओ वो नहीं मिलता .थाने के नंबर पर फोन करो तो आप आवाज़ नहीं पहचानते .घंटे भर से आपको बता रही हूँ कि सपना एक चिट्ठी  लिखकर भाग गयी है किसी लड़के के साथ .ढूंढो उसे .” ये कहकर गुस्से में श्रीमती जी ने फोन काट दिया और थानाध्यक्ष जी के रौब के तोते उड़ गए .
शिखा कौशिक ‘नूतन ‘

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