पिता की मृत्यु के पश्चात् जो बालक जन्म लेता है उसकी व्यथा को शायद वो या उसके जैसी परिस्थिति से गुजरने वाला बालक ही समझ सकता है.आज मैं उस बालक की मनोस्थिति को कुछ कुछ समझने का प्रयास करती हूँ तो मुझे अपने बाबा जी से एकाएक
सहानूभूति हो आती है .हमारे पड़बाबा जी की अट्ठारह वर्ष की अल्प आयु में मृत्यु के छः माह पश्चात् हमारे बाबा जी का जन्म हुआ .संयुक्त परिवार में ऐसा बालक दया का अधिकारी तो हो जाता है पर पिता का स्नेह उसे कोई नहीं दे सकता .यही कारण था कि वे अपनी माता जी के बहुत निकट रहे और उनकी मृत्यु होने पर अस्थियों को काफी समय बाद गंगा में प्रवाहित किया .एक अमीन के रूप में उन्होंने अपनी पहचान बनाई पर हमारे लिए तो वे केवल बाबा जी थे .जब तक जीवित रहे तब तक हमने कभी उन्हें लड़का-लड़की में भेद करते नहीं देखा . किसी भी प्रतियोगिता में यदि हम ईनाम पाते तो उन्हें अत्यधिक हर्ष होता .एक बुजुर्ग का साया प्रभु की कितनी बड़ी नेमत होती है -वे ही जान सकते है जिन्हें ये नसीब होता है .हमें ऐसा सौभाग्य प्राप्त हुआ इसके लिए हम प्रभु के आभारी हैं .रोजमर्रा की बातों में ही उन्होंने हमारे अन्दर संस्कारों के बीज बो दिए .मैं अपने समस्त परिवार की ओर से प्रभु से कामना करती हूँ की वे उनकी आत्मा को शांति दें व् हमें ऐसी सद्बुद्धि दें कि हम उनके दिखाए आदर्श पथ से कभी न भटकें .
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