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”ज़हरीले लबों पर मीठी सी मुस्कराहट !”

! अब लिखो बिना डरे !
! अब लिखो बिना डरे !
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बर्बादियों का जश्न खंडहर की सजावट ,
अंदर दरार गहरी बाहर की सजावट !
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अपनों के बीच गैर साज़िशें हैं ज़ालिम ,
ज़हरीले लबों पर मीठी सी मुस्कराहट !
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गम हमारे देखकर हमदर्दी जताना ,
खिल्ली उड़ाना पीछे सबकी यही आदत !
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खूँखार जानवर हैं दिल पर करें हमला ,
मक्कारियों में करते आंसू की मिलावट !
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‘नूतन’ तू बच के रहना फँसना न भंवर में ,
ये सच है ज़िंदगी का बनावट ही बनावट !

जागरण जंक्शन में २३ मार्च २०१४ को प्रकाशित

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शिखा कौशिक ‘नूतन’

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