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AKTU से जुड़े निजी संस्थानों की कहानी

Education in the hand of a Businessman
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शिक्षक शब्द अगर आपको गालियों की तरह चुभने लगे तो सत्य है की आप निजी संस्थान में शिक्षक हैं, और यदि भविष्य का आंकलन करने पर आपको आत्महत्या का विचार आने लगे तो पक्का ही आप AKTU के किसी निजी संसथान में कार्यरत हैं । यह वह विश्वविद्यालय है जो पुरे उत्तर प्रदेश में फैले हुए इंजिनीरिंग के संस्थानों को संबद्धता प्रदान करती है, अमूमन 800 से अधिक निजी व मात्र 8 (या इससे भी कम) सरकारी संस्थान AKTU से जुड़े हुए हैं जिनमे, अगर अंदाज भी लगाया जाये तो, 80000 (या इससे अधिक) शिक्षक कार्यरत होंगे (ठीक ठीक नहीं बता सकता, क्योंकि कोई भी निजी संस्थान नियमों की परवाह नहीं करता) ।
जब इतने बड़ी संख्या में आपके पास कार्यरत कर्मी हैं तो उनके प्राकृतिक न्याय के संगत आपके पास कुछ ब्यवस्था तो होगी ही, परंतु ये क्या ?????, AKTU के पास कोई सेवा नियमावली है ही नहीं, इसे इस बात की चिंता ही नहीं की इसके अंतर्गत कार्यरत कर्मी अगर किसी दुखद घड़ी से गुजरते हैं तो उनकी देख रेख कौन करेगा ? अगर किसी कर्मी की आकस्मिक मृत्यु हो जाये, अगर कोई गंभीर रूप से घायल हो जाये, अगर निजी प्रबन्धक अपने फायदे के लिए किसी अध्यापक को निकाल दे, अगर अध्यापकों को उचित तनख्वाह न मिले, अगर अध्यापकों को समय से तनख्याह न मिले, तो कहा जायेगा बेचारा अध्यापक, कैसे करेगा अपने परिवार का पोषण ????
सोचिये जरा क्या दशा होती होगी एक अध्यापक की जब बिना किसी नियम का पालन किये उसे निकाल दिया जाता होगा , या फिर उसे बेबस बना के आधे से भी कम दाम में रखा जाता होगा ?? एक अध्यापक जो कभी विद्यार्थी का नायक हुआ करता था आज वो ब्यवसायी के हाथों का खिलौना बन कर रह गया है । बड़े दुःख की बात है की इस देश का सरकारी अमला, प्रसासनिक अमला, सभी उस ब्यापारी को संरक्षण देने में लगे हुए हैं तथा उस अध्यापक की तरफ से कोई नहीं सोच रहा है जिसके पढ़ाये सब आगे बढ़ रहे हैं।
निजी संस्थानों में अध्यापकों की बोली लगती है, एक अध्यापक 8000 में रख लिया जाता है तो दूसरा 20000 में, तीसरा 34000 में रखा जाता है तो चौथा 42000 में, और मजे की बात तो ये है की एक HOD 65000 में रखा जाता है तो दूसरा 72000 में , तीसरा 80000 में तो चौथा 95000 में, इससे भी ऊपर देखिये कोई निदेशक 75000 में रखा जाता है तो कोई 85000 में , और हर संस्थान में कोई न कोई ऐसा होता है जिसे लाख या ज्यादा की तनख्वाह दी जाती है और उसी का काम होता है की वो प्रबंधक तक सारी जानकारी पहुंचाए तथा विद्यालय में हो रहे सारे गलत कार्यों में प्रबंधक का साथी बने तथा हस्ताक्षर करे ।
आखिर किस प्रकार से एक ही संस्था में कार्यरत कर्मियों की तनख्वाह इतनी अलग अलग हो सकती है ???? क्या UGC या AICTE ने कोई नियमावली ही नहीं बनायीं हैं ???? बनायीं है परंतु इन निजी संस्थाओं में UGC या AICTE के बनाये नियमों को तोड़ने की होड़ मची हुई है ।जहाँ ये एक तरफ सही योग्यता के अनुसार अध्यापक नहीं रखते वहीँ दूसरी तरफ ये योग्य शिक्षकों को उचित वेतन न देकर मजबूर कर देते हैं भागने को ताकि ये सस्ते दर पर मजदूर रख पाए और जिससे ये प्रबंधक किसी भी तरह का काम ले पाएं ।
अगर आप सभी संस्थानों की नियमानुसार जाँच करवा ले तो पाएंगे की शिक्षक विद्यार्थी का अनुपात कहीं भी नियमानुसार नहीं है। HEAD , DEAN , DIRECTOR जैसे पदों पर भर्तियां तो नियमों को तिलांजलि देकर हो ही रही हैं , विश्वविद्यालय के द्वारा कराये जाने वाले कार्यों के लिए भी जीतनी योग्यता होनी चाहिए वैसे शिक्षक भी नहीं मौजूद हैं इन संस्थानों के पास ।
एक तो विद्यालयों में शिक्षकों की संख्या काम रखी जाती है तो वही दूसरी तरफ उनसे कम वेतन में ही अनेको प्रकार के गैर शैक्षणिक कार्य कराये जाते हैं जैसे की संस्था में बच्चों का दाखिल करवाना, बच्चों के घर फ़ोन करके उनको बुलवाना, पुस्तकालय की साफ़ सफाई, संस्थान का प्रचार प्रसार ।
एक शिक्षक जो अपने विषय में विद्वता हासिल करना चाहता है , कुछ नयी खोज करना चाहता है , विश्वस्तरीय बनाना चाहता है , अपने छात्रों को विष्वस्तरीय बनाना चाहता है वो आज इन निजी प्रबंधकों की गुलामी में सिर्फ नौकर बन कर रह गया है ।
हा !!! खेद है मुझे भारत तेरी इस दुर्दशा पे , शर्म है मुझे तेरे वर्तमान पे, तरस आता है मुझे तेरा भविष्य सोचकर !!!

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