मैं कहता आंखन देखी
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गीता के नाम पर राजनीति…..
गीता बाहर- ढोंगी भीतर!
गंदी राजनीति इनका चरित्र!!
वास्तव में कुछ हो नहीं रहा है
गीता के दुश्मन न कोई मित्र!!
कुछ लोगों की गीता बना दी!
धूर्तों ने चापलूसों को सुना दी!!
राजनीति हो रहीं धर्म नाम पर
धूर्तता हर कदम पर जना दी!!
क ख ग की नहीं औकात!
वही कर रहे हैं धर्म की बात!!
आवारा गंदी राजनीति कीडे
समझें भाषा ये बस घुस्से लात!!
कुछ नहीं गीता के विकास को!
नहीं व्यवस्था लगे विनाश को!!
उपेक्षित बेचारी गीता पडी कोने
चमचे उठाए घूमते इसकी लाश को!!
आर्य हिंदुत्व का नहीं कोई भला!
तेरह सदी का इसका सिलसिला!!
धूर्त भारत की छाती पर जमे हैं
जरुरी है टूटना यह उपेक्षा किला!!
वैदिक योगशाला
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