मैं कहता आंखन देखी
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न तन की होली
न मन की होली
पता नहीं वह
किसकी हो ली!!
न भीतर होली
न बाहर होली
पता नहीं वह
कहां पर खो ली!!
अब स्वयं से स्वयं की होली
बाहर भी होली भीतर होली
अपने खुद की कर अनुभूति
छोड जगत की सब बडबोली!!
यम,नियम,आसन की होली
प्राणायाम,प्रत्याहार की होली
धारणा,ध्यान से लगा समाधि
ग्रंथियां स्वयं की स्वयं ही खोली!!
न वैर बाहर की चलती होली
सर्व प्रकृति यहां खेले होली
मैं संसार का संसार है मेरा
करो हिम्मत यह है बिन मोली!!
वैदिक योगशाला
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