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निकम्मा और आवारा हूं।
बेवकूफ सारे का सारा हूं।
हाड़तोड़ मेहनत का पुतला,
धोखेबाजों का बस चारा हूं।।
अड़ियल टट्टू हठ से भरा।
जैसे का तैसा नहीं सुधरा।
मार पर मार होती रहीं हैं,
बिना गुरु का सुनो नुगरा।।
असफलताओं का केंद्र हूं।
निष्काम कर्मयोगी कर्मेंद्र हूं।
गिरने पर उठने की हिम्मत,
सहनशीलता में धीरेन्द्र हूं।।
कंधों पर भार का प्रतीक हूं।
चलने हेतु पुरानी लीक हूं।
दुख भोगना अपने हिस्से में,
कहते बस मरने के समीप हूं।।
स्वार्थसाधन का माध्यम हूं।
फिर भी कहते हैं अधम हूं।
चोटें लगीं आह न निकली,
विषम परिस्थिति में सम हूं।।
आंसुओं का गिरता झरना हूं।
बिना उपलब्धि के मरना हूं।
तपकर भी कुंदन न बन पाया,
आग वैतरणी का तरना हूं।।
उपहासों का सुनो उपहास हूं।
नाकामियों का कती खास हूं।
दुख के बादल जहां से उठते,
जीती जागती बोलती लाश हूं।।
मरा हुआ सा एक परिंदा हूं।
गालियां सुनने को जिंदा हूं।
जिसको सताने में रस है,
निंदाओं की माता निंदा हूं।।
अभावों का अकेला ठिकाना हूं।
पुरातन संग अभिनव जमाना हूं।
भूखमरी,बेरोजगारी मजे से रहें,
दमघोटूं परिवेश का याराना हूं।।
रोते दिल की क्या-क्या सुनोगे।
मार मार झापड़ सिर को धुनोगे।
फिर भी हम मस्ती से रहते हैं,
इस दयनीय जीवन को कभी न चुनोगे।।
नोट : यह लेखक के निजी विचार हैं, इनसे संस्थान का कोई लेना-देना नहीं है।
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