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तेरा ही एक हिस्सा हूँ मै!

मन-दर्पण
मन-दर्पण
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हूँ कौन और क्या हूँ मै
हूँ तुझसे जुदा या तेरा हिस्सा हूँ मै
ऐ खुदा इतना बता
क्या हूँ खुद में मुकम्मल
या किसी कहानी का अधूरा सा किस्सा हूँ मै
है पास सब कुछ फिर जाने क्यों ये एहसास है

है अतृप्त ये मन की नदी
लिये किसी सागर मिलन की आस है
है नहीं कोई कमी तेरे इस जहां में
फिर क्यों एक कमी सी लगती है
है कौन सा आसमा वो मेरा
बिन जिसके अधूरी

ये रूह-ए-ज़मीं सी लगती है
उलझी इस कदर सवालों के घेरे में
भटक रही थी यूँ अँधेरे में
पर दिल की उलझनों को सुलझाने का

मिला ना कोई रास्ता
परेशां इस दिल की सदा

आई फिर लबो तक बनकर दुआ
और फ़ैल गयी सूनी ये हथेलियाँ
जब नीली चादर तले
पूछती अपनी ही लकीरों में गुम हुआ पता
उस पर बरसी मुझपर इस कदर
उसके रहमतों की बदलियाँ
बादलों की धुन पर थिरकती
आसमां से उतरी कुछ बूँद सहेलियाँ
एक नाम से रच गयी सूनी ये हथेलियाँ
जिसमे खुशबू थी एक एहसास की
उस अनदेखे से विश्वास की
वो जो हरकदम मेरा हमसाया था
बनकर  मुस्कान कभी जो खिला इन लबों पर
कभी अश्क बन इन आँखों का
जिसने दर्द में सहलाया था

लिये जवाब मेरे हर सवालों का
खोले बादलों की खिड़कियाँ
नन्ही-नन्ही बूंदों में जो मुस्काया है
मौला तू ही मुर्शिद मेरा मेरा खुदाया है
या खुदा तेरे नूर की बारिशों से
आज छंट गया भ्रम का हर धुआं था
थी मै तुझसे जुदा
ये इस नादाँ दिल का गुमां था

मौला तू ही तो रहबर मेरा वो मेरा रहनुमा है
है बिन जिसके अधूरी ये रूह-ए-ज़मीं
तू ही तो मेरा वो आसमां है
है तू ही तो वो असीम प्रेम का सागर
जिसका एक कतरा हूँ मै
होकर फना तुझमे

जो होगा मुकम्मल एक दिन
तेरी ही कहानी का

वो अधूरा सा किस्सा हूँ मै
हूँ नहीं तुझसे जुदा

तेरा ही इक हिस्सा हूँ मै
हूँ नहीं तुझसे जुदा
हाँ तेरा ही एक हिस्सा हूँ मै!

शिल्पा भारतीय “अभिव्यक्ति”

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